आचार्य शान्तिसागर महाराज ने दिगम्बर मुनि परम्परा को अपने संकल्प से पुर्नजीवित किया था
भीलवाड़ाPublished: Oct 15, 2021 08:20:41 pm
अखिल भारतीय दो दिवसीय विद्वत गोष्ठी
आचार्य शान्तिसागर महाराज ने दिगम्बर मुनि परम्परा को अपने संकल्प से पुर्नजीवित किया था
भीलवाड़ा।
विद्यासागर वाटिका में आयोजित समवशरण विधान में निर्यापक मुनि विद्यासागर महाराज ससंघ सानिध्य में शुक्रवार को 20वीं सदी के प्रथम दिगम्बर आचार्य चारित्र चक्रवति शांतिसागर महाराज के जीवन चरित्र पर अखिल भारतीय दो दिवसीय विद्वत गोष्ठी का आयोजन हुआ। मंगलाचरण डॉ धर्मेन्द्र जैन ने किया। गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए विद्यासागर महाराज ने कहा कि 19 शताब्दी में अंग्रेज आंक्राताओं के कारण दिगम्बर मुनि परम्परा लगभग लुप्त हो चुकी थी। कर्नाटक के बेलगांव में जन्मे सातगोडा पाटिल 1913 में छुल्लक दीक्षा एवं 1920 में दिगम्बर मुनि दीक्षा प्राप्त कर शांतिसागर नाम प्राप्त किया। विद्यासागर महाराज ने कहा कि आचार्य शांतिसागर महाराज ने अत्यन्त विपरित परिस्थितियों में भी बुझे हुए दीपक के समान दिगम्बर मुनि परम्परा को अपने दृढ़ चरित्र एवं संकल्प से पुर्नजीवित किया। गहन अंधकार के कारण जब जनमानस मार्ग से भटकने लगा तब आचार्य ने सूर्य की प्रखर किरणों के समान उस अंधकार को समाप्त किया। गोष्ठी के प्रथम सत्र का संचालन डॉ शैलेश जैन ने किया। डॉ सुरेन्द्र भारती, डॉ जयकुमार, डॉ शीतल प्रसाद ने आचार्य शांतिसागर महाराज के जीवन के विभिन्न महत्वपूर्ण प्रसंगों पर प्रकाश डाला।
विधान के छठे दिन सर्व साधु पूजा में आदिनाथ भगवान के समवशरण में विराजमान 84 हजार दिगम्बर साधु से लेकर महावीर भगवान के समवशरण में विराजमान 14 हजार साधु तक हुए, लाखों महातपस्वी, महा यशस्वी दिगम्बर साधु, जिनमें से हजारों साधुओं को समवशरण में ही कैवल्य ज्ञान होकर भगवत पद मिला, की पूजा की गई। इसके साथ तीर्थ प्रवर्तन पूजा एवं तीर्थंकर के 46 गुणों की भी पूजा की गई।
आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष नरेश गोधा ने बताया कि विधान के दौरान बडीसादडी से आए रोडमल, विनोद, हेमन्त गंगवाल ने 108 रिद्धी मंत्रों से अभिषेक किया। राजकुमार, दिलीप अजमेरा, प्रदीप, दिलीप, मनोज गंगवाल, कैलाश चन्द्र, सुमित, सचिन झांझरी ने शांतिधारा की। बापूनगर मंदिर के पदाधिकारियों ने मुनि संघ को श्रीफल भेंट कर आर्शीवाद प्राप्त किया। घीसुलाल, महेन्द्र, अनीश बाकलीवाल ने पादपक्षालन व नेमीचंद सोनी ने शास्त्र भेंट किए।