स्कूल खुले तो टेक्सटाइल उद्योग पकड़े गति
हर साल करीब 25 से 30 करोड़ मीटर कपड़े का होता उत्पादन

सुरेश जैन
भीलवाड़ा।
कोरोना काल में बंद स्कूलों से भीलवाड़ा टेक्सटाइल उद्योग को झटका लगा है। दीपावली व क्रिसमिस सीजन के बाद विविंग इकाइयां प्लेन व विभिन्न डिजाइन के स्कूल ड्रेस बनाने में लग जाती थी। भीलवाड़ा से तैयार 25-30 करोड मीटर स्कूल डे्रस का कपडा देश-विदेश जाता था। कोरोना के कारण स्कूल ड्रेस के कपड़े की मांग भारत में नहीं बल्कि अफ्रीकी व अरब देशों में घट गई है।
केवल बांग्लादेश, वियतनाम, श्रीलंका के रेडीमेड वस्त्र उत्पादक कुछ माल खरीद रहे हैं। स्कूल बंद रहने से टेक्सटाइल उद्योग गति नहीं पकड़ पा रहा है। उत्पादन अब भी ४० से ५० प्रतिशत ही हो रहा है।
स्कूल ड्रेस में प्लेन पीवी सूटिंग एवं शतप्रतिशत पॉलिस्टर सूटिंग में 30 से 40 रंगों में उत्पादन होता है। किड्स व लेडीज टॉप्स के लिए विभिन्न डिजाइनों के चेक्स बनाए जाते हैं लेकिन २० मार्च से ५६ दिन के लॉकडाउन में उद्योग बंद रहे। स्कूलें २० मार्च से ३१ दिसम्बर तक बंद है। ऐसे में स्कूल ड्रेस के कपड़े का उत्पादन नहीं हो रहा है।
नवम्बर से अगस्त तक उत्पादन
सिन्थेटिक्स विविंग मिल्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष रमेश अग्रवाल ने बताया कि दक्षिण की स्कूलों के बड़े व्यापारी नवंबर से प्लानिंग भेजने लगते हैं। वहां स्कूल ड्रेस के लिए रेडिमेड गारमेन्टस तैयार किए जाते हैं। इसके कारण नवंबर से ही काम शुरू हो जाता है। यह अगस्त तक देश के हर कोने के साथ विदेशों में भी निर्यात होता है। इस बार काम नहीं मिला है।
मध्यप्रदेश से मिल सकता ऑर्डर
अग्रवाल ने बताया कि मध्यप्रदेश सरकार ने इस बार एक साथ टैण्डर न कर हर जिले के कलक्टर को अपने स्तर पर निविदा करने व कपड़ा मंगवाने की छूट दी है। माना जा रहा है कि दिसम्बर में इसके टैण्डर खुल सकते हैं। इससे भीलवाड़ा के उद्यमियों को काम मिल सकता है। दर्जनों इकाइयों में स्कूल ड्रेस का काम ३६५ दिन २४ घंटे चलता था।
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एयरजेट पर मिलने लगा काम
किशनगढ़ व इंचलकरजी में उद्योग अभी पूरी तरह शुरू नहीं हुए। इससे कुछ काम भीलवाड़ा को जॉब पर मिलने लगा है। ऐसे में एयरजेट लूमों पर काम होने लगा है। भीलवाड़ा में एयरजेट के २००० से अधिक लूम है। इसकी दर २० से २५ पैसा प्रति पीक ली जा रही है। सल्जर में अभी १० से ११ पैसा प्रति पीक दर मिल रही है।
मोहम्मद साबिर, सचिव सिन्थेटिक्स विविंग मिल्स एसोसिएशन भीलवाड़ा
...तो उद्योग भी पकड़ सकते है रफ्तार
देश में स्कूल खुलने के साथ ही स्कूल ड्रेस की मांग शुरू होगी। साथ ही टेक्सटाइल उद्योग भी गति पकड़ेगा। एक साल में कम से कम छह माह तक स्कूल ड्रेस का कपड़ा बनाने के साथ शादी समारोह समेत अन्य की मांग होने से विविंग उद्योग अपनी रफ्तार पकड़ सकता है।
महेश हुरकुट, अध्यक्ष लद्यु उद्योग भारती
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