डॉ. आरएस श्रोत्रीय ने ब्लड ट्रांसमिशन की जानकारी देते हुए कहा कि थेलेसीमिया रोगियों के उपचार के लिए चिकित्सकीय टीम की मरीज तक पहुंच के साथ-साथ समाज में सम्मान पूर्वक रहने की व्यवस्था करनी चाहिए। इस रोग के निदान के लिए प्रशासन का सहयोग लेकर जिला स्तर पर सोसायटी बने और अलग से वार्ड बनाकर रोगियों की जांच व उपचार की सुविधा दिलाने के लिए प्रयास करे। डॉ. अनिल लढ्ढा ने थेलेसीमिया रोग से प्रभावित बच्चों के अभिभावकों से चर्चा कर उन्हें हो रही परेशानियों का निदान किया। डब्ल्यूएचओ के अनुसार भारत में हर वर्ष सात से दस हजार थेलेसीमिया पीडि़त बच्चों का जन्म होता है। डॉ. विवेक जैन ने बताया कि थेलेसीमिया बच्चों को माता-पिता से आनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रोग है। सूखता चेहरा, लगातार बीमार रहना, वजन ना बढऩा और इसी तरह के कई लक्षण बच्चों में थेलेसीमिया रोग होने पर दिखाई देने लगते है। इस रोग का फिलहाल कोई इलाज नहीं है। इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है। जिससे शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है। जिसके कारण मरीज को बार-बार बाहरी खून चढ़ाने व दवाइयों की आवश्यकता होती है। आयु बढऩे के साथ रक्त की जरूरत भी बढ़ती जाती है। इस कारण सभी इसका इलाज नहीं करवा पाते है, जिससे 12 से 15 वर्ष की आयु में बच्चों की मृत्यु हो जाती है। कार्यशाला के दौरान डीपीएम योगेश वैष्णव, गणेश उत्सव प्रबन्ध सेवा समिति अध्यक्ष उदयलाल समदानी, विक्रम दाधीच, गौतम दुग्गड सहित चिकित्सा विभाग के अधिकारी कर्मचारी व प्रभावित रोगियों के माता-पिता उपस्थित थे।