यह कहना है नशामुक्त युवा भारत आंदोलन संस्था के संयोजक नारायण भदाला का। अगरपुरा के रहने वाले नारायण ने बताया कि बुधवार को उनकी पीठ पर जब गोदने वाले ने नाम उकेरेने शुरू किए तो दर्द भी बहुत हुआ, लेकिन यह दर्द उसके मुकाबले रत्तीभर भी नहीं था, जो उन जवानों ने भोगा और उनके परिजन सहन कर रहे हैं। करीब ढाई घंटे में 32 शहीदों के नाम गोदे जा सके। पीठ पर तिरंगा और अमर जवान ज्योति की प्रतिकृति गुदवाने तक नारायण की पीठ से खून झरने लगा और गोदने वाले के पास इंक खत्म हो गई। इस पर बाकी दस नाम गुरुवार को उकेरेने का निर्णय किया गया।
यह पहला मौका नहीं है, जब नारायण ने देशभक्ति का जज्बा दिखाया हो। वर्ष 2011 से वे हर वर्ष 23 मार्च को देश पर मर-मिटने वाले शहीदों की याद में रक्तदान शिविर लगाते हैं। इसमें पार्षद मुकेश व शंकर डेरू समेत गांव के अनेक लोगों का सहयोग मिलता है।
यह पहला मौका नहीं है, जब नारायण ने देशभक्ति का जज्बा दिखाया हो। वर्ष 2011 से वे हर वर्ष 23 मार्च को देश पर मर-मिटने वाले शहीदों की याद में रक्तदान शिविर लगाते हैं। इसमें पार्षद मुकेश व शंकर डेरू समेत गांव के अनेक लोगों का सहयोग मिलता है।