प्रशासक ही बेहतर विकल्प प्रदेश में विधानसभा चुनाव की दूरी धीरे-धीरे सिमटती जा रही है। सत्ता का पूरा फोकस जिले की राजनीति पर हो गया है। संगठन में तालमेल बैठाने के लिए सोशल इंजीनियरिंग होने लगी है। इसी बैलेंस को बनाने के लिए सत्ता ने केबिनेट के बाद राज्य मंत्री भी जिले को दे दिया है। राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि जिले की सातों सीट पर इस बार कांग्रेस की नजर है, दो सीट बरकरार रखते हुए खोई हुई पांचों सीटें वापस लाने की जुगत शुरू हो गई है, लेकिन एक बड़ा तबका सोशल इंजीनियरिंग के तरीके से अभी भी ना खुश है। चर्चा खास यह है कि यूआईटी चैयरमेन को लेकर जो जोर आजमाइश जयपुर से लेकर दिल्ली तक हो रही है, उसमें संगठन को ही कई नुकसान नहीं हो जाए, इसलिए यह कुर्सी प्रशासक के हाथों में ही सुरक्षित रखने के ही संकेत अब दावेदारों को मिलने लगे है।
हम साथ साथ है चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात, भाजपा की राजनीतिक रील भी अब कुछ ऐसे ही तर्ज पर बन रही है। मैडम की भीलवाड़ा यात्रा में जो जोश नेताओं ने दिखाया, वह उनके जन्म दिन पर उफान पर नजर आया। छोटे से लेकर बड़े नेता उस दिन उनके कार्यकम में ही दिखाई दिए, लेकिन लम्बे समय से दूरी बना कर बैठे आला नेता गत दिनों एक साथ नजर आए और शहर की कानून एवं शांति व्यवस्था पर चिंता जताई तो संगठन में मुरझाए चेहरे खिल उठे। चर्चा है कि संगठन के कार्यक्रमों व आयोजनों से दूरी बनाए बैठे नेताओं के एक साथ नजर आने के पीछे जरूर ही कोई बड़ी बात रही होगी।
गुरुजी भी परेशान
यह जिला हमारा है और यहां की कानून एवं शांति व्यवस्था की जिम्मेदारी महज प्रशासन पर ही नहीं वरन हम सब पर है, सत्ता एवं विपक्ष भी इसी जिम्मेदारी के बड़े स्तम्भ है, लेकिन शहर से लेकर जिले में इन दिनों आपसी सौहार्द बिगाडऩे की जो कोशिश की जा रही है, वह चिंतनीय है। हाल की घटनाओं को लेकर विपक्ष ने जो हल्ला सत्ताधारी संगठन पर बोला है, वह भी कम चिंताजनक नहीं है। चर्चा है कि बढ़़ते राजनीतिक दबाव से पुलिस व प्रशासन के साथ ही अब शिक्षा विभाग के गुरुजी भी वार्षिकोत्सव के इस मौसम में परेशान है।