भीलवाड़ा में हर माह स्कूल ड्रेस के लिए करीब ढाई से तीन करोड़ मीटर कपड़ा तैयार होता है। इसका टर्न ओवर ढाई हजार करोड़ रूपए से अधिक है। यहां करीब सवा सौ छोटे-बड़, उद्योग में यह कपड़ा तैयार हो रहा है। स्कूल ड्रेस का सीजन दिसम्बर से जुलाई तक माना जाता है। स्कूल-कालेज पूरी क्षमता से खोले जाने की अनुमति मिलने के बाद दिवाली के समय देश के कई राज्यों से यहां के उद्यमियों को ड्रेस सम्बंधी कपड़े के बड़े ऑर्डर मिले।
अगले महीने स्कूलें खुलने की उम्मीद
कोरोना लहर के चलते राजस्थान के शहरी क्षेत्र में कई स्कूल बंद है। कई कालेजों में भी छुट्टी कर दी गई है। देश के अन्य राज्यों में स्कूल बंद है, लेकिन माना जा रहा है कि १५ फरवरी के बाद देश भर की सभी स्कूलें फिर से खुल जाएंगी और स्कूल ड्रेस के कपड़े की मांग में फिर से तेजी आएगी। इसी उम्मीद के यहां उद्योगों में उत्पादन जारी है।
भीलवाड़ा टेक्सटाइल ट्रेड फेडरेशन के कार्यकारी अध्यक्ष अतुल शर्मा के अनुसार स्कूल ड्रेस का प्लेन कपड़े सूटिंग के उत्पादन में भीलवाड़ा देश में सबसे आगे है। शर्टिंग में मुम्बई व सूरत भीलवाड़ा से आगे है। स्कूल डे्रस के उत्पादन में लगे सवा सौ से अधिक उद्यमियों ने अब कपड़ा उत्पादन में मुम्बई को पछाड़ दिया है। स्कूल ड्रेस का उत्पादन मुख्यत: दिसम्बर से जुलाई के मध्य होता है। यहां से हर माह तीन करोड़ मीटर कपड़ा देश के अन्य राज्यों में भेजा जा रहा है। पिछले दिनों देश भर बड़ी मात्रा में स्कूल ड्रेस के कपड़े की मांग आई हैं, जिसे पूरा करने में उद्यमी जुटे हुए हैं।
कोरोना लहर के चलते राजस्थान के शहरी क्षेत्र में कई स्कूल बंद है। कई कालेजों में भी छुट्टी कर दी गई है। देश के अन्य राज्यों में स्कूल बंद है, लेकिन माना जा रहा है कि १५ फरवरी के बाद देश भर की सभी स्कूलें फिर से खुल जाएंगी और स्कूल ड्रेस के कपड़े की मांग में फिर से तेजी आएगी। इसी उम्मीद के यहां उद्योगों में उत्पादन जारी है।
भीलवाड़ा टेक्सटाइल ट्रेड फेडरेशन के कार्यकारी अध्यक्ष अतुल शर्मा के अनुसार स्कूल ड्रेस का प्लेन कपड़े सूटिंग के उत्पादन में भीलवाड़ा देश में सबसे आगे है। शर्टिंग में मुम्बई व सूरत भीलवाड़ा से आगे है। स्कूल डे्रस के उत्पादन में लगे सवा सौ से अधिक उद्यमियों ने अब कपड़ा उत्पादन में मुम्बई को पछाड़ दिया है। स्कूल ड्रेस का उत्पादन मुख्यत: दिसम्बर से जुलाई के मध्य होता है। यहां से हर माह तीन करोड़ मीटर कपड़ा देश के अन्य राज्यों में भेजा जा रहा है। पिछले दिनों देश भर बड़ी मात्रा में स्कूल ड्रेस के कपड़े की मांग आई हैं, जिसे पूरा करने में उद्यमी जुटे हुए हैं।
बदलने लगा ड्रेस पेटर्न
उद्यमियों के अनुसार स्कूल ड्रेस के आमतौर पर प्लेन कपड़ा बनता है लेकिन कुछ समय से चेक्स, लाइनिंग व अन्य कलर व प्रिंट के कपड़ा भी बनने लगा हैं। सरकारी स्कूलों के साथ निजी स्कूलों ने भी ड्रेस का पैटर्न बदल दिया। चेक्स के कपड़ेे के लिए डायड यार्न की जरूरत होती है, जो केवल भीलवाड़ा में मिलता है।
उद्यमियों के अनुसार स्कूल ड्रेस के आमतौर पर प्लेन कपड़ा बनता है लेकिन कुछ समय से चेक्स, लाइनिंग व अन्य कलर व प्रिंट के कपड़ा भी बनने लगा हैं। सरकारी स्कूलों के साथ निजी स्कूलों ने भी ड्रेस का पैटर्न बदल दिया। चेक्स के कपड़ेे के लिए डायड यार्न की जरूरत होती है, जो केवल भीलवाड़ा में मिलता है।
'' हम हर माह लगभग ४० लाख मीटर स्कूल ड्रेस का कपड़ा तैयार करते हैं। अलग-अलग रंग का कपड़ा बनाते हैं। अगले शिक्षण सत्र के लिए अभी से यूनिफार्म का काम चल रहा है। देश के हर कोने से ऑर्डर भी मिल रहा है। इनकी सप्लाई भी चल रही है
नीलेश बांगड़, कपड़ा उद्यमी
नीलेश बांगड़, कपड़ा उद्यमी
कोरोना के कारण स्कूल फिलहाल बन्द है, लेकिन कपड़े की मांग अच्छी बनी हुई है। स्कूल खुलने के साथ ही कपड़े की मांग तेजी से बढ़ेगी। स्थिति यह है कि मांग के अनुसार आपूर्ति करना भी मुश्किल हो रहा है। आगे भी स्कूल ड्रेस का सीजन अच्छा चलने की उम्मीद है।
गोपाल झंवर, कपड़ा उद्यमी
गोपाल झंवर, कपड़ा उद्यमी
कोरोना की तीसरी लहर के चलते अभी स्कूल ड्रेस की मांग में कमी आई है, लेकिन १५ फरवरी के बाद स्कूलें खुलने की संभावना के साथ ही इसमें तेजी आएगी। इसकी मांग भी बढ़ेगी।
डीके चौधरी, कपड़ा उद्यमी
डीके चौधरी, कपड़ा उद्यमी