कलेक्टे्रट परिसर में ऊर्जा विकास निगम की ओर से 30 किलोवाट क्षमता का सोलर प्लांट लगाया गया है। इससे 25 किलोवाट का लोड लिया जा सकेगा, जो कलेक्ट्रेट की कुल उपयोग क्षमता से अधिक माना जा रहा है। आसमान में बादल होने की स्थिति से निपटने के लिए 1.2 एचपी की 24 बैटरी लगाई गई हैं। तीन इंवर्टरों से जोडऩे के लिए 8-8 बैटरियों का सर्किट बनाया गया है। खपत को काउंट करने के लिए कलेक्टे्रट तथा विद्युत कंपनी की ओर से अपने अपने मीटर लगाए गए हैं। खपत के बाद महीनें में जितनी भी बिजली बचेगी वो ग्रिड के माध्यम से विद्युत कंपनी के मीटर में दर्ज हो जाएगी। विद्युत कंपनी द्वारा दोनों के बीच का अंतर निकालकर बिलिंग की जाएगी।
यूं चलेगी प्रक्रिया माना महीनें में 1000 यूनिट की खपत होती है, इसमें से सोलर प्लांट का उत्पादन 600 यूनिट है तो कलेक्टे्रट को विद्युत कं पनी की ओर से 400 यूनिट की बिलिंग की जाएगी। रविवारों को मिलाकर औसतन 7 से 8 तक अवकाश रहतें हैं, अवकाश के दिनों में कार्यालय बंद रहने से खपत में 90 फीसदी तक की कमी आएगी, जबकि सोलर प्लांट से उत्पादन जारी रहेगा। इससे शासन को फायदा होगा। सोलर प्लांट से एडीएम कार्यालय, एनआईसी, ई-गर्वेनेंश, योजना एवं सांख्यिकी, लोक सेवा प्रबंधन, महिला एवं बाल विकास, डीपीसी कार्यालय, खाद्य विभाग, एसडीएम कार्यालय, भूअभिलेख आदि कार्यालयों को जोड़ा गया है। वर्तमान में कलेक्टे्रट का बिल 1 से 1.25 लाख रुपए प्रतिमाह तक आ रहा है, प्लांट लगने से 70 हजार के आसपास होने की संभावना है।
जिला पंचायत में भी 20 किलोवाट क्षमता का प्लांट लगाने का प्रस्ताव प्रयोग के तौर पर सबसे पहले कलेक्टे्रट परिसर में सोलर प्लांट लगाया गया है। इसके बाद जिला पंचायत में 20 किलोवाट क्षमता का सोलर प्लांट लगाने का प्रस्ताव है। इसके बाद डीईओ कार्यालय, पीएचई कार्यालय, लोनिवि, पशुपालन, सिंचाई, पुलिस अधीक्षक कार्यालय में भी सोलर प्लांट लगाए जा सकते हैं। इससे वैकल्पिक ऊर्जा का उपयोग करने के लिए आम आदमी भी मानसिक रूप से तैयार होगा और बिजली पर निर्भरता खत्म होगी।
&कलेक्टे्रट में लगाए गए सोलर प्लांट से विभिन्न कार्यालयों की खपत तो पूरी हो रही है। साथ ही अतिरिक्त बिजली से फायदा भी हो रहा है। बिजली की किल्लत को देखते हुए वैकल्पिक ऊर्जा का उपयोग जरूरी हो गया है। एक साल के भीतर कई अन्य शासकीय कार्यालयों में सोलर पैनल लगे दिखाई देंगे। यह भी बिजली की अपेक्षा काफी सस्ता भी है।
शिवकुमार बादल, जिला अक्षय ऊर्जा अधिकारी, भिण्ड