सरनाम सिंह कुशवाह पिछले पांच साल से सब्जी की फसल कर रहे हैं। आम किसान की भांति नहीं बल्कि फसल उत्पादन का उनका अलग ही अंदाज है। अन्य किसानों के मुकाबले वह अपनी फसल में 30 फीसद पानी और 60 से 65 फीसद खाद दे रहे हैं। लिहाजा जहां ७० फीसद पानी की बचत हो रही वहीं 35 से 40 फीसद खाद व यूरिया भी बचा रहे हैं। उनके खेत का पौधा आम किसान के खेत के पौधे से ज्यादा विकसित और उत्पादित साबित हो रहा है।
प्रति बीघा १५ से १८ हजार रुपए होती है लागत और मुनाफा एक लाख
कृषक सरनाम सिंह के अनुसार एक बीघा में 6400 रुपए कीमत की मल्चिंग प्लास्टिक सीड, 25 किलो डीएपी 650, यूरिया 20 किलो 150, 15 किलो पोटास 400 रुपए, 50 किलो सुपर फास्फेट 350 रुपए कीमत की लगानी होती है। वहीं बोवनी के समय 10 मजदूरों को 03 हजार रुपए, हार्वेस्टिंग के समय 05 हजार रुपए खर्चने होते हैं। ड्रिप सिस्टम पर सिर्फ एक बार एक एकड़ में 25 हजार रुपए व्यय होते हैं। बता दें कि सरनाम चार बीघा खेत से साल भर में टमाटर की तीन फसलें ले रहे हैं। एक फसल का मुनाफा चार लाख रुपए है। लिहाजा वर्ष में औसतन १२ लाख रुपए आय अर्जित हो रही है।
ये है सब्जी की फसल करने की आधुनिक पद्धति सरनाम सिंह ने अपने ट्यूबवेल पर ड्रिप सिस्टम लगाया है। इसके माध्यम से प्रत्येक पौधे को उतना ही पानी दिया जाता है जितना जरूरत होती है। ऐसे में पौधा जहां सडऩे से बच जाता है वहीं उसका पोषण ठीक से होने पर उत्पादन बढ़ जाता है। इसके अलावा मल्चिंग का उपयोग किया जा रहा है। एक प्लास्टिक सीड खेत के प्रत्येक कुढ़ी पर बिछा दिया जाता है। इससे पौधे के आसपास खरपतरवार पैदा नहीं होता। वहीं खाद और यूरिया भी की 35 से 40 फीसद बचत हो जाती है। जबकि ड्रिप सिस्टम के तहत बिछाई गई लेजम में पौधे के समक्ष छेद कर दिया जाता है। ऐसे में पानी सीधा पौधे को मिलता है। सिंचाई बूंद प्रणाली सिस्टम से पानी की बचत 70 फीसद हो रही है। खुले तौर पर सिंचाई के लिए पानी छोडऩे पर पौधा नष्ट हो जाता है। जरूरत के मुताबिक पानी मिलने पर वह पोषित होता है। खाद की बचत होती है।
अन्य किसानों को भी बता रहे आधुनिक खेती के गुर सरनाम सिंह कुशवाह आधुनिक पद्धति से की जाने वाली फसल के फायदे अन्य किसानों को भी बताकर उन्हें आर्थिक स्थिति से मजबूत करने का काम कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि सरनाम सिंह को संपन्न किसान बनाने में शासन की किसी योजना का योगदान नहीं है। सरनाम बताते हैं कि उनके पास स्वयं की जमीन नहीं होने से उन्हें शासन की योजना का लाभ नहीं मिल पाया है। हालांकि वह अपनी तरह अन्य किसानों को भी मजबूत करने का काम कर रहे हैं।