14 फरवरी 1981 को उत्तर प्रदेश कानपुर के पास बेहमई कांड हुआ था। तब फूलनदेवी और उसके साथियों ने 26 लोगों की गोली मारी थी। जिसमें 20 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई थी। इस बहुचर्चित हत्याकांड के 39 साल बाद अदालत का फैसला 6 जनवरी को आने जा रहा है। इस बेहमई कांड ने ही फूलन को बैंडिट क्वीन बनाया। ऐसे में आज हम आपको फूलन देवी के बंदूक थामने के पीछे की कहानी बता रहे हैं। जिसे सुनकर आप भी हैरान रह जाएंगे।
1. 10 अगस्त 1963 को उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव गोरहा में जन्मी यह महिला शुरू से ही जातिगत भेदभाव का शिकार रही। लेकिन 11 साल की उम्र में फूलन की जिंदगी में एक बड़ा बदलाव आया।
2. 11 साल की उम्र में फूलन देवी को गांव से बाहर भेजने के लिए उसके चाचा मायादिन ने फूलन की शादी एक बूढ़े आदमी पुट्टी लाल से करवा दी। फूलन इस उम्र में शादी के लिए तैयार नहीं थी। शादी के तुरंत बाद ही फूलन देवी दुराचार का शिकार हो गई। जिसके बाद वो वापस अपने घर भागकर आ गई। घर आकर फूलन देवी अपने पिता के साथ मजदूरी में हांथ बंटाने लगी।
3. महज 15 साल की उम्र में फूलन देवी के साथ एक बड़ा हादसा हो गया जब गांव के ठाकुरों ने उसके साथ गैंगरेप किया। इस घटना को लेकर फूलन न्याय के लिए दर-दर भटकती रही लेकिन कहीं से न्याय न मिलने पर फूलन ने बंदूक उठाने का फैसला किया और वो डकैत बन गई।
4. फूलन देवी के साथ ये हादसा यही ख़त्म नहीं हुआ, इंसाफ के लिए दर-दर भटकती इस महिला के गांव में कुछ डकैतों ने हमला किया। इसके बाद डकैत फूलन को उठाकर ले गए और कई बार रेप किया। यहीं से बदली फूलन की जिंदगी जब उसकी मुलाकात विक्रम मल्लासह से हुई। फिर दोनों ने मिलकर डाकूओं का अलग गैंग बनाया।
5. फिर फूलन ने अपने साथ हुए गैंगरेप का बदला लेने की ठान ली। और 1981 में 20 सवर्ण जाति के लोगों को एक लाइन में खड़ा कराकर गोलियों से छलनी कर दिया। इसके बाद पूरे चंबल में फूलन का खौफ पसर गया। सरकार ने फूलन को पकड़ने का आदेश दिया लेकिन यूपी और मध्य प्रदेश की पुलिस फूलन को पकड़ने में नाकाम रही।
6. बाद में तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से 1983 में फूलन देवी से सरेंडर करने को कहा गया। जिसे फूलन ने मान लिया। क्योंकि यहां फूलन के साथ मजबूरी थी उसका साथी विक्रम मल्लाह पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था।
7. फूलन ने यूं ही सरेंडर नहीं किया उसने सरकार से अपनी शर्तें मनवाई, जिनमें पहली शर्त उसे या उसके सभी साथियों को मृत्युदंड नहीं देने की थी। फूलन की अगली शर्त ये थी कि उसके गैंग के सभी लोगों को 8 साल से अधिक की सजा न दी जाए। इन शर्तों को सरकार ने मान लिया था।
8. लेकिन 11 साल तक फूलन देवी को बिना मुकदमे के जेल में रहना पड़ा। इसके बाद 1994 में आई समाजवादी सरकार ने फूलन को जेल से रिहा किया। और इसके दो साल बाद ही फूलन को समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ने का ऑफर मिला और वो मिर्जापुर सीट से जीतकर सांसद बनी और दिल्ली पहुंच गई।
9. इसके बाद साल 2001 फूलन की जिंदगी का आखिरी साल रहा। इसी साल खुद को राजपूत गौरव के लिए लड़ने वाला योद्धा बताने वाला शेर सिंह राणा ने दिल्ली में फूलन देवी के आवास पर उनकी हत्या कर दी। हत्या के बाद राणा का दावा था कि ये 1981 में सवर्णों की हत्या का बदला है।
10. इस हत्या को कई तरह से देखा जाता है। कभी इसमें राजनीतिक साजिश की बू नजर आती है तो कभी उसके पति उम्मेद सिंह पर भी फूलन की हत्या की साजिश में शामिल होने का आरोप लगता है। फूलन देवी पर फिल्म बैंडिट क्वीन भी बन चुकी है। जिसे शेखर कपूर ने डायरेक्ट किया था। इस फिल्म पर फूलन को आपत्ति थी। जिसके बाद कई कट्स के बाद फिल्म रिलीज हुई। लेकिन बाद में सरकार ने इस फिल्म पर बैन लगा दिया।