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भिंड

धर्म को भी हमने मनोरंजन और परंपरा समझ लिया-गणाचार्य पुष्पदंत सागर

भगवान महावीर स्वामी जयंती शहर में धूमधाम और उल्लास के साथ मनाई गई। श्रीजी की शोभायात्रा किला गेट से दोपहर में दो बजे शुरू हुई और करीब ढाई किलोमीटर का सफर तय कर लश्कर रोड स्थित कीर्तिस्तंभ परिसर में शाम पांच बजे पहुंच पाई। इस दौरान शहर में व्यापारियों ने अपने प्रतिष्ठान बंद रखे और महिला-पुरुष एवं बच्चों के साथ चल समारोह में भागीदारी की। धर्मध्वजा, छत्र लेकर स्वयं सेवक शामिल हुए।

भिंडApr 05, 2023 / 03:33 pm

Ravindra Kushwah

 महावीर स्वामी जयंती- भिण्ड

धर्म को भी हमने मनोरंजन और परंपरा समझ लिया-गणाचार्य पुष्पदंत सागर

भिण्ड. बैंडबाजों, हाथी-घोडों के साथ निकली शोभायात्रा में उमडी भीड के कारण किला गेट से कीर्तिस्तंभ परिसर तक पैदल निकलने का भी जगह नहीं बची। बैंड-बाजों और धार्मिक भजनों के साथ शोभायात्रा में शामिल श्रद्धालुओं ने भी भजन गाए और नृत्य किया। भिण्ड विधायक संजीव सिंह कुशवाह संजू, जिला पंचायत सदस्य धर्मेंद्र सिंह भदौरिया पिंकी सहित बडी संख्या में जैन समाज और सर्वसमाज के लोग चल समारोह में शामिल हुए। चल समारोह में शामिल होने वाले लोगों के लिए रास्ते में एक सैकडा से अधिक स्थानों पर शीतल की व्यवस्था की गई। रास्ते भर लोगों ने जगह-जगह स्वागत किया और चल समारोह पर पुष्पवर्षा भी की। किला गेट से परेड चैराहे तक तो चल समारोह करीब दो घंटे में पहुंचा। इसके लिए एक घंटे का समय लश्कर रोड पर भी लगा। कीर्ति स्तंभ परिसर पहंुचकर भगवान महावीर स्वामी की शांतिधारा की गई और गणाचार्य पुष्पदंत सागर महाराज, आचार्य सौरभ सागर और मुनि क्रांतिवीर प्रतीक सागर महाराज की उपस्थिति में धर्मसभा का आयोजन किया गया। गणाचार्य पुष्पदंत सागर महाराज ने मंच से समाज को ऐसे आयोजनों और खास तौर भगवान महावीर स्वामी जैसे तीर्थंकर के जीवन से प्रेरणा लेकर धर्म को आत्मसात करने पर जोर दिया।गणाचार्य पुष्पदंत सागर महाराज ने कहा कि हमने धर्म को भी मनोज का साधन और परंपरा समझ लिया है। चल समारोह में शामिल हुए, नाचे, गाए और चलते बने। जबकि हमें ऐसे अवसर पर संकल्प लेना चाहिए कि कोई नियम अगले आयोजन तक पालन करेंगे। धर्म भी शस्त्र की तरह है। जब शस्त्र को चलाना न आए तो उठाना या चलाना नहीं चाहिए। इसी प्रकार आचारण में साधना, करुणा एवं दया की आवश्यकता है। इसलिए हमने कहा है कि सागर के किनारे यदि गए हो तो उसमें डुबकी जरूर लगाओ, तभी उसके बारे में जानकारी मिल पाएगी। ऐसा ही धर्म के मामले में हैं। ध्यान की गहराई में जाना चाहिए, ध्यान की गइराई शास्त्र पढने से मिलेगी।
कोयल से सीख लेने की जरूरतगणाचार्य ने कहा कि एक पक्षी होकर भी कोयल इतनी कोमल बोली बोलती है कि उसे ठहरकर सुनने का मन करता है। तब हम इंसान अपनी वाणी में मधुरता क्यों नहीं ला सकते । वाणी और व्यवहार में मधुरता, कोमलता से सबका मन जीता जा सकता है।
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