ग्वालियर. जिस औलाद का पेट भरने के लिए मां-बाप भूखे रहते हैं और पेट काटकर उनकी हर फरमाइश पूरी करते हैं, वही औलाद जब बड़े होने पर साथ रखने से मना कर देती है तो दिल क्या पूरी जिंदगी ही टूट जाती है। उम्र के इस पड़ाव में जब उन्हें सबसे ज्यादा परिवार की और ख्याल रखने वाले अपनों की जरूरत होती हैं तो ऐसे वक़्त में यही औलादें उनसे मुंह मोड़ लेती हैं। बरसों बीत जाते हैं लेकिन कभी तीज त्यौहार में भी मुड़ कर नहीं देखते। शहर के वृद्धाश्रमों में भी बुजुर्ग अपनों संग होली, दीपावली, ईद, लोहड़ी मनाने को तरस रहे हैं। जिगर के टुकड़ों के आने के इंतजार में वे टकटकी लगाए बैठे रहते हैं परंतु लाडलों का आना तो दूर अधिकांश तो फोन पर त्यौहारों की बधाई देना तक उचित नहीं समझते। पत्रिका टीम ने माधव वृद्धाश्रम और नारायण वृद्धाश्रम में जाकर घर-परिवार से उपेक्षित इन बुजुर्गों से जब बात की तो कइयों की आंखें छलक आईं। किसी को उनकी बेटी और दामाद ने निकाल दिया है, तो किसी को उनके बेटे और बहू ने और कई आत्मसम्मान को बचाने के लिए घर छोड़कर वृद्धाश्रम में रह रहे हैं।
पैसे हथियाकर बेटे और बहू ने घर से निकाला
ग्वालियर के घाटमपुर के ग्राम नोमैदा के रहने वाले घनश्याम पाल वन विभाग में कार्यरत थे। उन्हें पत्नी और बहू प्रताड़ित करती थी, खाने को नहीं देती थी। बेटा भी उनका साथ नहीं देता था। रिटायरमेंट के बाद प्रोविडेंट फंड से मिले एक लाख रुपए और साथ ही में जीवन भर जोड़-जोड़ कर जमा किए 80 हजार भी जबरन मारपीट कर छीन लिए। रोज- रोज की जिल्लत की जिंदगी से तंग आकर वह शहर में नई सड़क स्थित माधव वृद्धाश्रम पहुंचे और दो साल से इसी आश्रम में रह रहें हैं।
बहू आती हैं पेंशन के पैसे ले जाती हैं
ग्वालियर के संजय नगर की रहने वाली 70 वर्षीय राधाबाई ने बताया कि बड़े बेटे के खत्म होने के बाद छोटे बेटे ने घर से निकाल दिया। पति गुजर गए हैं. भूलने की बीमारी का हवाला देकर दो साल पहले बेटे और बहू उन्हें माधवराव वृद्धाश्रम छोड़ गए। बेटा कभी भी आश्रम में उन्हें देखने नहीं आता। बहू आती हैं और वृद्धावस्था पेंशन के पैसे लेकर चली जाती हैं।
बड़ी संख्या में पहुंच रहे संपन्न घरों के बुजुर्ग
पत्रिका टीम जब शहर के दो वृद्धाश्रमों में बुजुर्गों का हाल जानने के लिए पहुंची तो बेहद चौकाने वाले मामले सामने आए. माधव वृद्धाश्रम और नारायण वृद्धाश्रम में इस वक्त 45 बुजुर्ग रहे हैं. इनमें 45 प्रतिशत तो ऐसे हैं जो संपन्न परिवार के होते हुए भी अपनी जिंदगी के आखिरी दिन वृद्धाश्रम में गुजारने को मजबूर हैं, जबकि 36 प्रतिशत बुजुर्ग ऐसे हैं जो गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं. 16 प्रतिशत वह बुजुर्ग हैं जिनका परिवार में अब कोई नहीं बचा हैं
वर्जन हमारा आश्रम ग्वालियर के लोगों के जनसहयोग से चल रहा हैं. यहां आने वाले बुजुर्गों को अपनों की याद न आए इसलिए हमारा ट्रस्ट उनका पूरा ख्याल रखता हैं. बर्थडे से लेकर मैरिज एनिवर्सरी तक धूमधाम से सेलिब्रेट किया जाता हैं. आजकल लोग तरक्की और पैसे कमाने की दौड़ में लगे हैं जिससे रिश्तों में दूरियां बढ़ रही हैं. बुढ़ापे का सहारा बनने के बजाय बुजुर्गों को नजरअंदाज किया जा रहा हैं.