सरकार ने पुराने शहरों, गंदीबस्ती क्षेत्रों का पुर्नघनत्वीकरण कर रही हैं। ये कार्य पीपीपी मोड पर निजी बिल्डरों से कराए जा रहे हैं। यही पर सबकी भागीदारी में किफायती आवास बनाने के लिए बिल्डरों को जमीन दी गई है। बिल्डरों ने भोपाल, इंदौर जबलपुर, ग्वालियर में सहित करीब दस शहरों में डेढ़ लाख आवास बनाए हैं।
इन आवासों को बेंचने के लिए निकायों ने दो बार विज्ञापन जारी किए, लेकिन अभी तक एक भी मकान बुक नहीं हुए। इन आवासों की लागत 4 से 6 लाख रुपए निर्धारित की गई हैं, जिसमें दो लाख रुपए ही हितग्राही को देना पड़ता है।
बांकी की राशि सरकार और नगरीय निकाय मिलकर देते हैं। बताया जाता है कि इस माकान का कार्पेट एरिया कापी छोटा और फ्लैट है, जिसके चलते उपभोक्ता मकान खरीदने में रुचि नहीं ले रहे हैं। मकान की बुकिंग नहीं होने बिल्डरों ने आधे अधूरे में ही काम बंद कर दिया है। जबकि प्रदेश में इस तरह के कुल तीन लाख आवास बनाने के लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं।
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दस प्रतिशत बुकिंग के बाद शुरू होंगे नए प्रोजेक्ट
सरकार ने कई नगरीय निकायों में सबकी भागीदारी में किफायती आवासों के निर्माण पर रोक लगा दी है। निकायों को यह कहा गया है कि वे पहले इन आवासों के लिए विज्ञापन जारी करें।
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दस प्रतिशत बुकिंग के बाद शुरू होंगे नए प्रोजेक्ट
सरकार ने कई नगरीय निकायों में सबकी भागीदारी में किफायती आवासों के निर्माण पर रोक लगा दी है। निकायों को यह कहा गया है कि वे पहले इन आवासों के लिए विज्ञापन जारी करें।
दस फीसदी आवासों की बुकिंग होने के बाद ही प्रोजेक्ट शुरू करें। दस फीसदी से नीचे बुकिंग होने पर 6 माह तक उक्त प्रोजेक्ट को रोक दें और इसके बाद दोबारा विज्ञापन जारी करें। जिन निकायों में यह आवास बनाए जा रहे है वहां वार्ड स्तर पर स्टाल लगाकर उसे बेंचने का प्रयास करें तथा प्रचार प्रसार भी करें।
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बैंक नहीं दे रहे हैं लोन
इन प्रोजेक्टों के लिए बिल्डरों को बैंक लोन भी नहीं दे रहे हैं। बैंकों को लग रहा है कि रियल स्टेट में वैसे ही मंदी है और सबकी भागीदारी में किफायती आवासों की बुकिंग नहीं हो रही है। जब तक आवास नहीं बिकेंगे तब तक उनकी राशि फंस जाएगी। वहीं बिल्डर भी इन आवासों को बनाने में थोड़ा पीछे हट रहे हैं।
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बैंक नहीं दे रहे हैं लोन
इन प्रोजेक्टों के लिए बिल्डरों को बैंक लोन भी नहीं दे रहे हैं। बैंकों को लग रहा है कि रियल स्टेट में वैसे ही मंदी है और सबकी भागीदारी में किफायती आवासों की बुकिंग नहीं हो रही है। जब तक आवास नहीं बिकेंगे तब तक उनकी राशि फंस जाएगी। वहीं बिल्डर भी इन आवासों को बनाने में थोड़ा पीछे हट रहे हैं।