एक साल से इन मशीनों को दूसरे कमरे में शिफ्ट करने की कवायद चल रही है। प्रबंधन ही ढीलपोल का नतीजा है कि मरीजों को निजी अस्पतालों में डायलिसिस कराने को मजबूर होना पड़ रहा है। पिछले एक साल में हमीदिया अस्पताल के लिए करीब 40 करोड़ रुपए के उपकरण, फर्नीचर व अन्य सामान खरीदे गए, लेकिन नया डायलिसिस यूनिट के उन्नयन का प्रस्ताव ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
तो बच जाते मरीजों के 1.5 करोड़
यह दस मशीनें समय पर काम करने लगती तो मरीजों को लाभ होता। पांच मशीनों से एक दिन में न्यूनतम 10 मरीजों की डायलिसिस की जाती। इस हिसाब से एक साल में इन मशीनों से 3.5 हजार मरीजों की डायलिसिस हो जाती। अस्पताल में सुविधा ना होने से यह मरीज निजी अस्पताल गए, जहां प्रति डायलिसिस 3000 रुपए लिए जाते हैं। हिसाब लगाया जाए तो 3.5 हजार मरीज अब तक 1.5 करोड़ रुपए की डायलिसिस करा चुके हैं, जबकि हमीदिया में यह नि:शुल्क हो जाती।
पानी की कमी भी बड़ी समस्या
हमीदिया अस्पताल में मशीनों से आरओ के पानी से किडनी मरीजों का खून साफ किया किया जाता है। अभी जो आरओ प्लांट लगा है, उसकी क्षमता 500 मिली/ प्रति घंटे है। 8 मरीजों के लिए 1 हजार मिली/घंटा की क्षमता वाला आरओ प्लांट होना चाहिए।
क्या है सच
कुल डायलिसिस मशीनें 08
रोजाना डायलिसस: 20 मरीजों की
एक मरीज पर पानी का खर्च :300 लीटर
अभी आरओ यूनिट की क्षमता : 500 मिली/ प्रति घंटा
आरओ यूनिट की जरूरत: 2000