दरअसल केंद्र द्वारा देश भर के स्कूलों और छात्रों का ऑनलाइन रिकार्ड रखने के लिए यूडीआईएसई प्लस (यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इनफरमेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन) नामक ऑनलाइन सिस्टम बनाया गया है। इसमें हर जिले के शिक्षा अधिकारियों को पूरी एंट्री करना आवश्यक है। यूडीआई प्लस को जीआई मैपिंग से भी जोड़ा गया है, ताकि स्कूल शिक्षा में चलने वाले फर्जीवाड़े को रोका जा सके। वर्ष 2017-18 की तुलना में 2018-19 में यूडीआईएसई प्लस में मध्यप्रदेश के स्कूलों में तेजी से गिरावट दर्ज की गई है। 2018-19 में प्रदेश में कुल 153984 स्कूल दर्ज किए गए हैं, जो कि पिछले साल की तुलना में 2092 कम हैं। इन स्कूलों में पढऩे वाले 106328 बच्चों का डाटा भी गायब है।
केंद्र सरकार के ईमेल के बाद राज्य शिक्षा केंद्र ने सभी जिलों के कलेक्टर और शिक्षा विभाग के अफसरों से पूछा है कि उनके जिले के कितने स्कूलों की एंट्री यूडीआईएसई प्लस में नहीं की गई और इसके पीछे क्या कारण है। यदि इस मामले में उचित कारण सामने नहीं आता है तो जिम्मेदार अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई भी की जाएगी।
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केंद्र सरकार के ईमेल के बाद राज्य शिक्षा केंद्र ने सभी जिलों के कलेक्टर और शिक्षा विभाग के अफसरों से पूछा है कि उनके जिले के कितने स्कूलों की एंट्री यूडीआईएसई प्लस में नहीं की गई और इसके पीछे क्या कारण है। यदि इस मामले में उचित कारण सामने नहीं आता है तो जिम्मेदार अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई भी की जाएगी।
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क्या होगा नुकसान-
केंद्र सरकार स्कूल शिक्षा के क्षेत्र में बजट का आवंटन यूडीआईएसई प्लस के ऑनलाइन डाटा के आधार पर ही करता है। ऐसे में प्रदेश के कम स्कूल और छात्र संख्या होने के कारण फंड कम हो सकता है। वहीं केंद्र द्वारा बनाई जाने वाली योजनाओं के क्रियान्वयन पर भी असर पड़ेगा।
केंद्र सरकार स्कूल शिक्षा के क्षेत्र में बजट का आवंटन यूडीआईएसई प्लस के ऑनलाइन डाटा के आधार पर ही करता है। ऐसे में प्रदेश के कम स्कूल और छात्र संख्या होने के कारण फंड कम हो सकता है। वहीं केंद्र द्वारा बनाई जाने वाली योजनाओं के क्रियान्वयन पर भी असर पड़ेगा।