बात 14 जनवरी 1949 की है। भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हो चुका था। देशभर में तिरंगा लहरा रहा था, लेकिन भोपाल तब भी गुलाम ही था। भोपाल के दायरे में तिरंगा लहराना और वंदे मातरण बोलना गुनाह था। भोपाल की जनता पीड़ित थी और वो जल्द से जल्द नवाब की गुलामी से निकलकर भारत में शामिल होना चाहती थी।
दिल्ली में पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार आकार ले चुकी थी। यहां आजादी का संघर्ष तेज हो चुका था। भारत आजाद हो चुका था और भोपाल रियासत के लोग अब भी आजादी के लिए जान दे रहे थे। उसी दौर में रायसेन जिले में स्थित बोरास गांव में उस समय ऐसी घटना हुई, जिसने देशभर में आक्रोश पैदा हो गया था। यहां मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जा रहा था, मेला लगा हुआ था। नर्मदा किनारे स्थित बोरास गांव में तिरंगा लहराने की सूचना भोपाल नवाब को मिल गई थी। नवाब ने अपने सबसे क्रूर थानेदार जाफर खान को वहां पदस्थ कर दिया। जाफर खान भी अपनी टुकड़ी को लेकर संक्रांति के मेले में तैनात हो गया था।
थानेदार जाफर अली खां की चेतावनी भरी आवाज गूंजी। नारे नहीं लगेंगे, झण्डा नहीं फहराया जाएगा और किसी ने भी आवाज निकाली तो उसे गोली से भून दिया जाएगा। उसी समय 16 वर्ष का किशोर छोटेलाल आगे आया। उसने जैसे ही भारत माता की जय का नारा लगाया, तो बौखलाए थानेदार ने वीर छोटेलाल को गोली मार दी।
शहीद छोटेलाल के हाथ से तिरंगा ध्वज गिरता तभी सुल्तानगंज (राख) के 25 वर्षीय वीर धनसिंह ने आगे बढ़कर ध्वज अपने हाथों में थाम लिया। थानेदार ने धनसिंह के सीने पर गोली मारी। इससे पहले कि वह गिरता कि मंगलसिंह ने ध्वज थाम लिया। वीर मंगल सिंह बोरास का 30 वर्षीय युवक था। उसने भी गगन भेदी नारे लगाना प्रारंभ किया और थानेदार की गोली उसके भी सीने को पार करती हुई निकल गई।