ऐसे में एक बार फिर नेताओं और पार्टियों की ओर से विकास और उपलब्धियों के नए-नए आयाम गढ़ने की बातें की जा रही हैं। इस बीच मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की स्थिति कुछ ऐसी है।
भोपाल लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत 8 विधानसभा सीटें आती हैं, जिसमें भोपाल उत्तर, नरेला, भोपाल दक्षिण-पश्चिम, भोपाल मध्य, गोविंदपुरा, हुजूर, सीहोर और बैरसिया (सुरक्षित) शामिल हैं।
इस बार भोपाल से कांग्रेस के टिकट पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह मैदान में हैं, तो दूसरी ओर भाजपा से साध्वी प्रज्ञा ठाकुर सामने आ चुकीं हैं। वहीं इसके साथ ही माना जा रहा है कि वोटों के ध्रुवीकरण के बीच एक बार फिर मुख्य मुद्दे पीछे ही छूट सकते हैं।
12 मई को होना है मतदान
देखना यह है कि ऐसे तमाम सुविधाओं से वंचित और विकास के इंतजार में भोपाल शहर इस बार अपने लिए किसे चुनेगा। हालांकि पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में यहां की जनता ने गहरी जड़ें जमा चुकी भाजपा से मुंह मोड़ लिया और कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को अपनी सेवा के लिए चुना। अब भोपाल में 12 मई यानी छठे चरण में लोकसभा चुनावों के लिए मतदान होंगे।
दरअसल जानकारों के अनुसार राजधानी के कई ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, जो हर चुनाव में चर्चा और भाषणों में शामिल तो होते हैं, लेकिन समाधान नहीं हो पाता है। अब ये देखना दिलचस्प होगा कि भोपाल की जनता ध्रुवीकरण के झूले में झूल जाती है या वो अपने मुद्दों पर कायम रहते हुए मतदान कर यहां से सांसद चुनती है।
जानिये भोपाल के सालों साल पुराने मुद्दे जो अब तक सुलझे नहीं…
1. ओद्योगिक विकास
यहां के लोगों का कहना है कि मध्य प्रदेश की राजधानी होने के बावजूद यहां बड़े पैमाने पर औद्योगिक विकास नहीं है। जबकि इंदौर और उसके आसपास के इलाकों में लोगों के लिए बेहतर विकल्प और सुविधाएं हैं। भले ही पास में मंडीदीप औघोगिक क्षेत्र है, लेकिन वहां और अधिक विकास की संभावना के बावजूद इस ओर सरकारें कम ही ध्यान देती हुई दिखीं हैं।
2. शिक्षा:
शिक्षा के मामले में काफी हद तक प्राइवेट स्कूलों पर निर्भर हो गई है। लोगों के अनुसार ये स्थितियां सरकारी स्कूलों के कमजोर होने से पैदा हुई हैं।
वहीं लोगों का ज्यादा पैसा इन्हीं प्राइवेट स्कूलों पर बच्चों को पढ़ाई कराने में खर्च होता है। ऐसे लोग लंबे समय से यहां बड़े शिक्षा संस्थानों की मांग कर रहे हैं, इसके बावजूद अब तक यहां आइआइएम, आइआइटी या इसी प्रकार के दूसरे शिक्षा से जुड़े संस्थान नहीं हैं।
वैसे तो शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर स्थित इंडस्ट्रियल एरिया में कई बड़ी कंपनियों के कारखाने हैंं, जिससे लोगों के रोजगार की संभावनाएं बढ़ती हैं। वहीं राजधानी में भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड के भी कई कारखाने हैं। लेकिन भोपाल के विकास में 80 के दशक में यूनियन कार्बाईड फैक्ट्री में हुए गैस कांड ने जा गहरी चोट पहुंचाई, उससे शहर अब तक पूरी तरह से उबर नहीं पाया है। इस कांड के बाद भारी संख्या में लोगों की मौत और गंभीर बीमारियों के कारण शहर के विकास की गति धीमी हो गई।
क्षेत्र की जनता के अनुसार स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी राजधानी काफी पीछे है, यहां एम्स जैसा अस्पताल होने के बावजूद कई तरह के सामान्य टेस्ट तक की सुविधा नहीं है, जिसके कारण मरीजों को ये टेस्ट बाहर से मुंह मांगी रकम पर करवाने को मजबूर होना पड़ता है। ऐसे में स्वास्थ्य सेवाओं को भी बेहतर व पूर्ण विकसीत बनाने की लंबे समय से शहर में मांग उठती रही है।
5. अंतरराष्ट्रीय विमान सेवा
लंबे समय से यहां विमान यातायात के विस्तार की मांग चली आ रही है। इसी के चलते पिछले दिनों करीब 40 हजार लोगों ने एक प्रदर्शन रैली का भी आयोजन किया गया था। उनकी मांग थी कि भोपाल एयरपोर्ट से पुणे, चेन्नई और लखनऊ के अलावा अंतरराष्ट्रीय सेवाओं की भी शुरुआत की जाए।
6. स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट
केंद्र सरकार के 2017 में स्मार्ट सिटी मिशन के तहत चुने गए पहले 20 शहरों में भोपाल का नाम भी शामिल रहा। लेकिन रोजगार को लेकर यहां को लोगों का कहना है कि यह अब भी एक बड़ा मुद्दा है। वो कहते हैं कि देश में आर्थिक विकास तो हुआ, लेकिन उसका लाभ सभी हिस्सों तक नहीं पहुंच पाया है। हालांकि अभी शहर में निर्माणाधीन मेट्रो प्रोजेक्ट से लोगों को काफी उम्मीदें हैं।
जानकारों की मानें तो अभी भी आम जनता के मुख्य मुद्दे नेताओं की फेहरिस्त से नदारद दिख रहे है। ऐसे में क्षेत्र के विकास की जगह केवल कुछ दूसरी ही बातों को लेकर नेता चुनाव लड़ते दिख रहे हैं।