पूरे देश में पहले नंबर पर
ये वो किशोरी बालिकाएं होती हैं जो स्कूल से बाहर हैं। साल 2018-19 की रिपोर्ट में ये बात सामने आई है कि प्रदेश की 3 लाख 5 हजार किशोरी बालिकाओं को पोषण आहर दिया जा रहा है जो कि देश में सबसे ज्यादा संख्या है। यानी मध्यप्रदेश इस मामले में पूरे देश में पहले नंबर पर है।
98 हजार बच्चियां स्कूल छोड़ चुकी हैं
इस रिपोर्ट में एक और हैरानी वाली बात ये है कि पिछले तीन साल से ये आंकड़ा कम होने की बजाय लगातार बढ़ता जा रहा है। वहीं प्रदेश के एजुकेशन पोर्टल के हिसाब से 98 हजार बच्चियां स्कूल छोड़ चुकी हैं। सरकार के दो विभागों की रिपोर्ट में ही समानता न होने से ये तो साफ है कि विभागों में आपसी समन्वय की कमी से कुपोषण दूर करने के प्रयास कारगर साबित नहीं हो रहे।आशंका इस बात की भी है कि जो लड़कियां स्कूल छोड़ चुकी हैं वे या तो बाल श्रम करने को मजबूर हैं या फिर मानव तस्करी का शिकार हो रही हैं।
3 साल में इस तरह बढ़ी किशोरियों की संख्या :
पिछले तीन साल का आंकड़ा देखें तो प्रदेश में स्कूल छोडऩे वाली किशोरी बालिकाओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। साल 2016-17 में पोषण आहर पाने वाली किशोरियों की संख्या 1 लाख 22 हजार 230 थी जो साल 2017-18 में बढ़कर 1 लाख 25 हजार 452 हो गई।
2018-19 की रिपोर्ट और चौंकाने वाली है
साल 2018-19 की रिपोर्ट और चौंकाने वाली है। इसमें स्कूल छोड़कर पोषण आहार प्राप्त करने वाली बालिकाओं की संख्या में बड़ा इजाफा हुआ है। इस साल 3 लाख 5 हजार किशोरियां स्कूल छोड़ पोषण आहार ले रही हैं। ये संख्या में देश में सभी राज्यों से ज्यादा है।
स्कूल शिक्षा विभाग का आंकड़ा
स्कूल शिक्षा विभाग के एजुकेशन पोर्टल के हिसाब से ड्रॉप आउट छात्रों की संख्या अलग है। विभाग के मुताबिक आज की स्थिति में कुल 2 लाख 22 हजार 670 बच्चे स्कूल से बाहर हैं। इनमें लड़कियों की संख्या 98 हजार 628 है। स्कूल शिक्षा विभाग और महिला एवं बाल विकास विभाग की रिपोर्ट में ही बड़ा अंतर सामने आ रहा है।
स्कूल से जोडऩे की कोशिश कर रहा
वहीं स्कूल शिक्षा मंत्री प्रभुराम चौधरी दावा करते हैं कि बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने पर फोकस किया जा रहा है ताकि सरकारी स्कूल भी निजी स्कूलों की कतार में खड़े नजर आएं। इससे ड्रॉप आउट छात्रों की संख्या में कमी आएगी। विभाग स्कूल चलें अभियान के तहत ड्रॉपआउट छात्रों को फिर से स्कूल से जोडऩे की कोशिश कर रहा है।
विभागों में समन्वय की कमी :
भोजन के अधिकार के तहत काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सचिन जैन कहते हैं कि सरकार के विभागों में आपसी समन्वय की कमी है। कुपोषण दूर करने के लिए महिलाा एवं बाल विकास विभाग, स्कूल शिक्षा विभाग, स्वास्थ्य विभाग और चिकित्सा शिक्षा जैसे विभागों को आपसी समन्वय के साथ एक टीम की तरह काम करना होगा।
विभागों में किसी तरह का कोई समन्वय ही नहीं
स्कूल से ड्रॉप आउट किशोरियों के दो तरह के आंकड़े ही ये दिखाने के लिए काफी हैं कि दोनों विभागों में किसी तरह का कोई समन्वय ही नहीं है। इसमें महिला एवं बाल विकास विभाग के आंकड़े ज्यादा सही इसलिए लगते हैँ क्योंकि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एक-एक हितग्राही को पोषण आहार देती हैं जबकि स्कूल शिक्षा विभाग का काम ज्यादातर कागजों पर ही चलता है।
तस्करी का शिकार भी हो जाती है
सचिन जैन कहते हैं कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि स्कूल छोड़ चुकी अधिकांश छात्राएं बाल श्रमिक बनकर काम कर रही हैं, कई मानव तस्करी का शिकार भी हो जाती हैं।
पोषण आहर में फर्जीवाड़े पर रोक लगाई है
हमने सख्ती कर पोषण आहर में फर्जीवाड़े पर रोक लगाई है। विभाग उन सभी किशोरियों को पोषण आहर दे रहा है जो स्कूल छोड़ चुकी हैं। विभाग का आंकड़ा इसलिए सही माना जा सकता है क्योंकि हम फिजिकल वैरीफिकेशन के आधार पर ही पोषण आहर उपलब्ध कराते हैं। महिला एवं बाल विकास विभाग की केंद्रीय रिपोर्ट में भी ये बात सामने आई है।
इमरती देवी महिला एवं बाल विकास मंत्री,मप्र