सरकारी स्कूलों में बच्चों कम होने से हर साल मध्याह्न भोजन का ग्राफ भी गिर रहा है। सरकार का दावा है कि सरकारी स्कूलों में बच्चों का दाखिला बढ़ रहा है, लेकिन मध्याह्न भोजन खाने वालों की संख्या से सरकार के दावों से उलट है। जुलाई 2017 में मध्याह्न भोजन की राशन सामग्री का ऑनलाइन आवंटन शुरू किया गया। इसके बाद भी करीब आठ लाख छात्र कम हुए। हर साल सरकारी स्कूलों में बच्चों का दाखिला भी घट रहा है।
ऐसे कम हो रहा बच्चों का रुझान
सितंबर, 2013 9962326 बच्चों को मध्याह्न भोजन दिया जा रहा था।
सितंबर, 2014 9251038 बच्चों को भोजन दिया गया।
सितंबर, 2015 8355487 बच्चे दर्ज थे सरकारी स्कूलों में, जिन्हें भोजन दिया।
सितंबर 2016 8291637 बच्चे दर्ज थे, जिन्हें भोजन दिया गया।
मार्च, 2017 60.31 लाख बच्चों को मध्याह्न भोजन खिलाया गया।
मार्च 2018 52.60 लाख बच्चे रह गए मध्याह्न भोजन करने वाले।
(नोट- 2016 तक सितंबर से सितंबर तक रिपोर्ट तैयार की जाती थी। इसके बाद मार्च से मार्च तक की रिपोर्ट तैयार की जाने लगी है।)
कमी छिपाने ये किया
स्कूल शिक्षा विभाग ने कमी छिपाने के लिए सरकारी आंकड़ों के साथ निजी स्कूलों में प्रवेश लेने वाले बच्चों को भी जोडऩा शुरू कर दिया है। विभाग ने 2017-18 में विधानसभा पटल पर जो जानकारी रखी उसमें ऐसा ही किया है।
ऑनलाइन का बहाना
बच्चों के गिरते ग्राफ पर ‘पत्रिका’ ने पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अफसरों से बात तो उन्होंने दो साल के आंकड़ों के बारे में बताया कि 2017 में मध्याह्न भोजन के राशन वितरण के लिए ऑनलाइन प्रक्रिया अपनाई गई है, इसलिए डुप्लीकेसी कम हो गई, लेकिन हकीकत ये है कि कमी पांच साल से लगातार दर्ज की जा रही है।
हमारे स्कूलों में बच्चों के दाखिले कम नहीं हुए हैं, बल्कि 25 प्रतिशत बच्चे निजी स्कूलों में शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत चले जाते हैं। मध्याह्न भोजन व्यवस्था तो पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की है।
दीपक जोशी, राज्यमंत्री, स्कूल शिक्षा