23 सेंटीमीटर काथा ट्यूमर
गांधी मेडिकल कॉलेज के सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अरविंद राय के मुताबिक इस ट्यूमर का आकार करीब को 23 सेंटीमीटर था। अमूमन इतने बड़े ट्यूमर को अलग अलग हिस्सों में निकाला जाता है। लेकिन इसमें ट्यूमर का कुछ हिस्सा छूट जाने का डर होता है। इसलिए पहली बार एक साथ पूरे ट्यूमर को अलग किया गया।
गांधी मेडिकल कॉलेज के सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अरविंद राय के मुताबिक इस ट्यूमर का आकार करीब को 23 सेंटीमीटर था। अमूमन इतने बड़े ट्यूमर को अलग अलग हिस्सों में निकाला जाता है। लेकिन इसमें ट्यूमर का कुछ हिस्सा छूट जाने का डर होता है। इसलिए पहली बार एक साथ पूरे ट्यूमर को अलग किया गया।
प्लास्टिक सर्जन की भूमिका भी निभाई
डॉ. वानजा ने बताया कि ऑपरेशन में सबसे बड़ी समस्या मरीज की उम्र थी। इस उम्र में इस तरह के ऑपरेशन करना थोड़ा मुश्किल होता है। हमने ऑपरेशन की तैयारी की। इसमें जबड़े का कैंसर ग्रसित हिस्सा अलग करना था और इसकी जगह नया मांस लगाना था। इसके लिए हमने मरीज की छाती से मांस निकालकर चेहरे का हिस्सा बनाया और मरीज को लगा दिया। इस पूरी प्रकिया में करीब पांच घंटे का समय लगा। डॉ. वानजा के मुताबिक यह ऑपरेशन खास था, क्योंकि इसमें प्लास्टिक सर्जन शामिल नहीं थे। इस तरह के ऑपरेशन में प्लास्टिक सर्जन का महत्पवूर्ण किरदार रहता है। बदकिस्मती से ऑपरेशन के दिन हमें प्लास्टिक सर्जन नहीं मिल सके। ऐसे में हमने ही प्लास्टिक सर्जरी भी की।
डॉ. वानजा ने बताया कि ऑपरेशन में सबसे बड़ी समस्या मरीज की उम्र थी। इस उम्र में इस तरह के ऑपरेशन करना थोड़ा मुश्किल होता है। हमने ऑपरेशन की तैयारी की। इसमें जबड़े का कैंसर ग्रसित हिस्सा अलग करना था और इसकी जगह नया मांस लगाना था। इसके लिए हमने मरीज की छाती से मांस निकालकर चेहरे का हिस्सा बनाया और मरीज को लगा दिया। इस पूरी प्रकिया में करीब पांच घंटे का समय लगा। डॉ. वानजा के मुताबिक यह ऑपरेशन खास था, क्योंकि इसमें प्लास्टिक सर्जन शामिल नहीं थे। इस तरह के ऑपरेशन में प्लास्टिक सर्जन का महत्पवूर्ण किरदार रहता है। बदकिस्मती से ऑपरेशन के दिन हमें प्लास्टिक सर्जन नहीं मिल सके। ऐसे में हमने ही प्लास्टिक सर्जरी भी की।