समझें बचत का गणित
सीमेंट-कांक्रीट की सात मीटर चौड़ी और एक किमी लंबी सडक़ निर्माण में करीब एक करोड़ रुपए का खर्च आता है। इसके किनारे नाली बनाई जाती है तो खर्च पांच फीसदी यानी 5 लाख रुपए बढ़ जाता है। इसी राशि को बचाने की जुगत में करोड़ों की सडक़ें खराब हो रही हैं।
सीमेंट की सडक़ किनारे नाली जरूरी
मैनिट के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर एसएस राजपूत का कहना है कि देश में सडक़ निर्माण में इंडियन रोड कांग्रेस (आइआरसी) के नियमों का पालन होता है। इसमें सीमेंटेड रोड किनारे ड्रेन अनिवार्य किया गया है। सडक़ चाहे तीन मीटर चौड़ी हो, डे्रन फिर भी जरूरी है, ताकि पानी निकल सके।
800 मोहल्लों में सीसी रोड डे्रन नहीं
नालियां बनाने में इंजीनियर और ठेकेदार कितने गंभीर हैं, इसकी हकीकत इससे समझी जा सकती है। बीते एक साल में शहर के 800 मोहल्लों में सीसी रोड का काम हुआ। इनमें से किसी रोड पर डे्रन नहीं बनाई गई। मोहल्लों में सीसी रोड घरों से उपर बन गई और पानी सडक़ से सीधे घरों में घूस रहा है।
नगरीय प्रशासन के इंजीनियर नहीं मानते
इन चीफ प्रभाकांत कटारे के अनुसार उन्होंने भोपाल समेत प्रदेश के सभी नगरीय निकायों को आइआरसी नियमों के साथ स्पष्ट निर्देश भेजे हैं कि ड्रेन नहीं बनाने से सडक़ें खराब हो रही हैं, इसलिए डे्रन जरूर बनाएं। बावजूद इसके इसपर गंभीरता नहीं दिखाई ज रही है। डे्रन नहीं होगी तो सडक़ों पर पानी जमा होगा और वे टूटेंगी।
डीआइजी बंगला क्षेत्र निवासी मोहम्मद फराज का कहना है कि हमारे मोहल्ले में सीसी रोड पीछली बारिश के ठीक पहले बना था। हम ठेकेदार से कहते रहे कि नाली बनाओ, लेकिन नहीं सुनी। इंजीनियर को शिकायत की, पर सुनवाई नहीं हुई। अब बारिश का पानी जमा हुआ तो रोड खराब हो गई।
जांच करेंगे
हम टेंडर में प्रावधान तो करते हैं, लेकिन निर्माण क्यों नहीं की जाती, इसे दिखवाना पड़ेगा। कई जगह डे्रन बनाई है। जहां नहीं बनाई, वहां की जांच करेंगे। पीके जैन, अधीक्षण यंत्री, सिविल शाखा