लेकिन एनजीटी ने सरकार को इस संबंध में पॉलिसी बनाने और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को आरओ सिस्टम के संबंध में लोगों को जागरूक करने के लिए कहा था, यह भी नहीं हुआ। जबकि आरओ सिस्टम के चलते हर दिन भोपाल में लगभग 60 लाख लीटर पानी बर्बाद हो रहा है। लोगों में मिनरल्स की कमी होने का खतरा भी बढ़ रहा है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पीने के पानी में टीडीएस की मात्रा 500 मिलीग्राम से कम होने पर आरओ पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश दिए थे। यानी जिन जगहों में ये मात्रा मानक से कम है, वहां के लोगों को आरओ का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। राजधानी में ज्यादातार पेयजल की सप्लाई कोलार, नर्मदा और केरवा डैम से हो रही है।
: भोपाल में हाउसहोल्ड- 4 लाख : आरओ सिस्टम लगे- 1.5 लाख : एक परिवार में प्रतिदिन औसत पानी की खपत- 20 लीटर : आरओ द्वारा- 20 लीटर के शुद्धीकरण में बाहर निकलने वाला पानी- 40 लीटर
एनजीटी ने आरओ सिस्टम पर रोक लगाने के निर्देश दिए थे। लेकिन इसके लिए अभी तक कोई लीगल फ्रेमवर्क तैयार नहीं हो पाया है। इसलिए कोई कार्रवाई आगे नहीं बढ़ी है। लोगों को जरूर टीडीएस की जांच कराकर ही आरओ सिस्टम लगवाने का फैसला लेना चाहिए। एक लीटर पानी में 500 एमजी से कम टीडीएस होने पर आरओ का प्रयो नहीं करना चाहिए।
- ब्रजेश शर्मा, रीजनल अधिकारी एमपीपीसीबी
यह है नुकसान
पर्यावरणविद डॉ सुभाष सी पांडे के अनुसार आरओ यानी रिवर्स ऑस्मोसिस से पानी शुद्ध करने के लिए लिए काफी पानी चाहिए होता है। यदि आरओ में तीन लीटर पानी छानने के लिए डालें तो एक लीटर साफ पानी आता है और 2 लीटर बाहर निकल जाता है। इससे पानी की तीन गुनी मात्रा बर्बाद होती है।
इसके साथ आरओ सिस्टम उन मिनरल्स को भी छान देता है जो शरीर के लिए जरूरी हैं। जैसे आयरन, मैग्नीशियम, कैल्शियम और सोडियम जैसे तत्व भी छन जाते हैं। आरओ पानी में पाए जाने वाले सॉल्ट से क्षारीय खनिज को हटा देता है। इससे पानी अम्लीय हो जाता है और पेट की समस्या पैदा करता है। हमीदिया अस्पताल के डॉ मनुज शर्मा के अनुसार शरीर की अंदरूनी क्रियाओं को सुचारू रूप से संचालित करने और सैल्स के निर्माण में मिनरल्स बहुत जरूरी होते हैं। इससे कई बीमारियां हो सकती हैं।