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75 शो किए, आठ से 80 साल के लोगों को सिखाया संगीत

locationभोपालPublished: Jan 18, 2019 09:15:12 pm

Submitted by:

Rohit verma

सीनियर बैंक मैनेजर की नौकरी छोड़ दे रहे संगीत की नि:शुल्क शिक्षा

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75 शो किए, आठ से 80 साल के लोगों को सिखाया संगीत

भोपाल/संत हिरदाराम नगर. संगीत ऐसे ही हर किसी को नसीब नहीं होती है। नसीब उसे ही होती है जिसके पास सरस्वती का वास होता है। संगीत विरासत में मिलने वाली परंपरा है जिसमें परिवार की पीडिय़ां संगीत में रुचि रखती हंै। भले ही आज नई जनरेशन के गाने युवाओं को पसंद आते हो, लेकिन आज भी वह लोग है जिनके कानों में 80 से पहले के गाने ही गूंजते हंै।

संत हिरदाराम नगर निवासी सुरेश बैन बैंक ऑफ महाराष्ट्र में सीनियर मैनेजर की नौकरी में रहे। लेकिन उन्हें तो सिर्फ बचपन से संगीत की दिवानगी थी। संगीत के प्रति उन्हें इतना लगाव है कि वह बैंक में सीनियर मैनेजर की नौकरी छोड़ कर संगीत की नि:शुल्क शिक्षा देने लगे है। उनकी नौकरी के 9 साल बचे थे। इसके बाद वह स्कूल में शिक्षक भी रहे लेकिन संगीत के अलावा उन्हें कुछ अच्छा नहीं लगाता। सुरेश बैन बताते है कि जब वह कक्षा तीसरी पढ़ते थे तब उन्हें स्कूल में पहला मंच मिला था जिसके बाद सब उनकी आवाज के दीवाने हो गए और कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लगे।

 

उनके नाना भी संगीत में शिक्षक थे, मामा का जबलपुर में संगीत का महाविद्यालय था। घर के सभी सदस्यों ने संगीत नहीं सीखा वह अपने आप ही संगीत सीखे हैं। 1959 में जन्मे सुरेश बैन अभी तक हजारों ऐसे लोगों को संगीत सीखा चुके है जिन्हें संगीत का शौक है। 75 शो करके करीब एक हजार लोगों को वह मंच भी दे चुके है। इसमें 8 साल से लेकर 78 साल तक के लोग सीखने के शौकिन है।

निर्धन संगीत प्रेमियों को दे रहे हैं शिक्षा
सुरेश बैन अपने घर पर दिन भर नि:शुल्क संगीत की शिक्षा दे रहे हैं। सुबह 10 बजे जब वह अपने घर में संगीत के लिए वाद्ययंत्र उठाते हैं तो धीरे-धीरे शौकीनों की भीड़ जमा हो जाती है। यह क्लास रात 10 बजे ही बंद होती है। इसमें खास बात यह है कि वह गरीब लोगों को शिक्षा दे रहे हैं। इसमें उन्हें सुकून मिलता है।

 

आमुर्किल से मंच देने की शुरुआत
सुरेश बैन ने बताया कि अब उन्होंने आमुर्किल की शुरुआत की है। आ-आशा, मु-मुकेश, र-रफी, कि-किशोर, ल-लता मंच का नाम दिया है। जिसमें दिन भर गरीबों को शिक्षा देने के बाद उन्हें हर रविवार को शो करके मंच दिया जा रहा है। उनके प्रोत्साहन के लिए पुरस्कार भी दिया जा रहा है और बच्चों को मंच भी मिलता है।

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