श्रीधर ने बताया कि संग्रहालय के पास अब तक स्वराज अखबार के संपादकों के बारे में लिखित जानकारी ही उपलब्ध थी। पहली बार उनके फोटो एग्जीबिट किए गए हैं। नवंबर 1907 में उर्दू में निकलने वाले अखबार स्वराज ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कभी कलम को कमजोर नहीं होने दिया। अंग्रेजों ने इसकी सजा भी दी। इस अखबार में ढाई साल में आठ संपादक बदले। इसके सात संपादकों को 94 साल 9 महीने सजा काटना पड़ी। इसके कुल 75 अंक ही निकले। बदायूं के सुधीर विद्यार्थी ने इस अखबार और इन संपादकों से जुड़े दस्तावेज 31 मई को संग्रहालय को सौंपे हैं।
एक पैर दफ्तर में दूसरा जेल में होगा…
विजयदत्त श्रीधर के अनुसार यह अखाबर करीब ढाई वर्ष तक प्रकाशित हुआ। संपादक शाांतिनारायण भटनागर को दो वर्ष की सजा और 500 रुपए जुर्माना लगाया गया। वहीं, होतीलाल वर्मा को 10 वर्ष की सजा सुनाई गई। इसी तरह बाबू राम हरी को 21 वर्ष की सजा तो नंदगोपाल और लद्दाराम को 30-30 वर्ष की सजा हुई। यह अखबार नवंबर 1907 में प्रयागराज से शुरू हुआ और 1910 में बंद हो गया। श्रीधर बताते हैं कि अखबार के संपादक को जौ की दो रोटी और एक प्याला पानी तनख्वाह के रूप में दिया जाता था।उनका एक पैर दफ्तर में दूसरा जेल में होना… भी योग्यता थी।
मल्लाह ने धोए थे गांधीजी के चरण…
श्रीधर के अनुसार संग्रहालय में एक पेंटिंग लगी है। जिसमें मल्लाह गांधीजी के पैर धो रहा है। यह घटना 1 दिसंबर 1993 की जबलपुर दौरे की है। गांधीजी पैसेंजर ट्रेन से करेली पहुंचे थे। वहां से नर्मदा के बरमान घाट पहुंचे। यहां मल्लाह ने उनके पैर पखारने के बाद उन्हें नाव में नर्मदा की सैर कराई। वहीं, एक अन्य पत्र भोपाल विलीनीकरण आंदोलन से जुड़ा हुआ है। यह पत्र बालकृष्ण गुप्ता ने जगदीशप्रसाद चतुर्वेदी को बोरस कांड में हुई हत्याओ के तुरंत बाद लिखा था। इस पत्र की भोपाल की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका थी।