इस सम्बन्ध में संग्रहालय के निदेशक डॉ. प्रवीण कुमार मिश्र ने बताया कि कपडागंदा डोंगरिया कोंध जनजाति का हाथ से बुना हुआ एक प्रतिष्ठित शॉल है जो उनकी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और सामुदायिक पहचान का प्रतीक है। यह ज्यादातर अविवाहित लड़कियों / महिलाओं द्वारा बुना जाता है, जो उनकी कुशल कशीदाकारी के बारे में बतलाता है। अविवाहित महिलाएं अपने प्रियजन को प्रेम के प्रतीक के रूप में उपहार देने के लिए इस शॉल पर कढ़ाई करती हैं।
यह उनके द्वारा अपने भाई या पिता को स्नेह के प्रतीक के रूप में भी उपहारस्वरूप दिया जाता है। निर्माण सामग्री के रूप में उपयोग किए जाने वाले सफेद मोटे कपड़े डोम समुदाय से अनाजों से विनिमय कर प्राप्त किये जाते हैं। रंग-बिरंगे धागों का उपयोग करके सुई की मदद से कपड़े पर रूपांकनों की कढ़ाई की जाती है। पहले वे पत्तों और फूलों जैसे हल्दी, सेम के पत्ते, जंगली बीजों से क्रमशः पीले, हरे और लाल रंग तैयार करते थे।
रंग को फीका होने से बचाने के लिए वे केले के फूल को पानी में उबालकर रंगे हुए धागों को उसमें डालते हैं । उन्होंने अपने पर्यावरण, अर्थव्यवस्था, सदियों पुरानी मानव बलि प्रथा और सांस्कृतिक मूल्यों को दर्शाने के लिए लाल, हरे और पीले रंग का इस्तेमाल किया है। पीला रंग शांति, एकता, स्वास्थ्य और खुशी का प्रतीक है। इसे शुभ का ***** भी माना जाता है और यह उनके समुदाय की उत्पत्ति भी बताता है। हरा रंग उनके उर्वर पहाड़ों, सामुदायिक समृद्धि एवं विकास का प्रतीक है। लाल रंग रक्त, ऊर्जा, शक्ति और प्रतिकार का प्रतीक होने के साथ ही चढ़ावे / बलि द्वारा देवताओं को प्रसन्न करने का भी प्रतीक है।
शॉल में हाथ से बुने हुए रूपांकन मुख्य रूप से विभिन्न प्रकार की रेखाएं और त्रिकोणीय आकार होते हैं जो उनके समुदाय के लिए पहाड़ों के महत्व को दर्शाते हैं। कपडागंदा का उपयोग डोंगरिया कोंध द्वारा विवाह और उत्सव के अवसरों पर एक दुपट्टे की तरह धारण करने के लिए किया जाता है।