एक हजार साल पुरानी है परंपरा सोनम पिछले सातों सालों से यहां आ रहे हैं। सोनम के अनुसार जबरो डांस लगभग एक हजार साल पुराना नृत्य है। जिसे लद्दाख के नोमेडिक जनजाति के लोग करते हैं। लोसर को मनाने की परंपरा 17 वीं शताब्दी में राजा, जमैयांग नामग्याल ने शुरू की थी। तब से लद्दाख में नव वर्ष को त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। लोसर के पहले दिन लोग अपने घर में लगे बगीचों की साफ-सफाई करके घर में मिलने आने वाले अतिथियों और रिश्तेदारों के स्वागत स्वरुप उपहार देने के लिए खाटक (सफेद रंग के मलमल कपड़े से बना दुपट्टा, जिसे गले में माला जैसे पहनाया जाता है) लाकर रखते है। इसके बाद घरों को, मंदिरों को दीपक की रोशनी से रोशन करते हैं।
माइनस 24 डिग्री में होता है डांस सोनम बताते हैं कि लद्दाख में त्योहार के दौरान अधिकांश समय माइनस 24 डिग्री तापमान रहता है। ये त्योहार बौद्ध कैलेंडर के दस महीने की 25 तारीख से शुरू होकर ग्यारहवें महीने की पांचवीं तारीख तक चलता है। शाम के समय सभी एकत्रित होकर जबरो डांस करते हैं। डांस से पहले आसपास आग जलाई जाती है ताकि जंगली जानवर नजदीक न आए। इस नृत्य की शुरूआत तिब्बत से मंगोल आए राजा पालगी गोंड के आने के बाद से हुई थी।