scriptनशे की पहुंच सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री तक नहीं, हर फील्ड में ऐसे लोग, ड्रग्स के हर रैकेट को उजागर करे एनसीबी | Access to drugs is not just for the film industry | Patrika News

नशे की पहुंच सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री तक नहीं, हर फील्ड में ऐसे लोग, ड्रग्स के हर रैकेट को उजागर करे एनसीबी

locationभोपालPublished: Oct 03, 2020 12:19:31 am

Submitted by:

hitesh sharma

इंडियन फिल्म एण्ड टेलीविजन डायरेक्टर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट और प्रोड्यूसर अशोक पंडित ने कहा कश्मीर समस्या से कश्मीरी हिन्दू ही दूर

नशे की पहुंच सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री तक नहीं, हर फील्ड में ऐसे लोग, ड्रग्स के हर रैकेट को उजागर करे एनसीबी

नशे की पहुंच सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री तक नहीं, हर फील्ड में ऐसे लोग, ड्रग्स के हर रैकेट को उजागर करे एनसीबी

भोपाल। इंडियन फिल्म एण्ड टेलीविजन डायरेक्टर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट और प्रोड्यूसर अशोक पंडित ने कहा कि एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत शक के दायरे में तो है, मुझे लगता है कि सुशांत सिंह की मौत आत्महत्या नहीं हत्या ही है। सरकार किसे और क्यों बचा रही है, ये जांच एजेंसियों को पता लगाना चाहिए। उन्होंने कहा कि फिल्म इंडस्ट्री में ड्रग्स इन्वॉल्वमेंट की बात है तो कानून अपना काम करेगा। ये कहना कि सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री में ही ड्रग्स है तो ये गलत बात है। हर फील्ड में आपको ऐसे लोग मिल जाएंगे। ग्लेमर इंडस्ट्री बिकती है इसलिए ये मुद्दा इतना बड़ा बन गया। नारकोटिक्स डिपार्टमेंट को इस रैकेट को उजागर कर इंडस्ट्री की सफाई करनी चाहिए। कंगना राणावत के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि कंगना के लाइफ से जुड़े अपने एक्सपीरियंस हैं। उन्हें बोलने का पूरा हक है। नेपोटिज्म को लेकर मेरी सोच अलग है। मैं यदि मेहनत कर रहा हूं तो मैं अपने बच्चों को भी आगे बढऩे में मदद करूंगा। ये पाप नहीं है। यदि उसमें टैलेंट होगा तो ही चल पाएगा। ऐसे तो हर फील्ड में नेपोटिज्म है।

कश्मीर समस्या से कश्मीरी हिन्दू ही दूर
उन्होंने कहा कि कश्मीर मामले में अब तक बहुत अच्छा काम हुआ है। हालांकि सरकार का हर बड़ा नुमाइंदा कश्मीर ही जाता है। पिछले सात सालों में एक भी नेता जगती कैंप में नहीं आया। यहां करीब 60 हजार विस्थापित बहुत खराब हालात में रह रहे हैं। कश्मीर की समस्या से कश्मीरियों को ही दूर रखा जा रहा है। मेरा मानना है कि कश्मीर के लिए योजना बनाने में कश्मीर हिन्दू बुद्धिजीवियों को सबसे पहले शामिल करना चाहिए। हमें बसाने से पहले योजना तो बनाए। हम भेड़-बकरी नहीं है जो ले जाकर छोड़ दिया। यूपीए सरकार ने भी यही गलतियां की।

अब कहानियों का स्वरूप बदल जाएगा
उन्होंने कहा कि कोरोना के चलते इंडस्ट्री में भी बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे। ड्राइव-इन सिनेमा का कॉन्सेप्ट अब यहां भी पॉपुलर हो सकता है। हालांकि इससे किसी थिएटर फॉर्म को फर्क नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि वेब सीरिज पर सेंसरशिप का कोई मतलब नहीं है। सेंसरशिप खुद की जिंदगी में होना चाहिए। बचपन में स्कूल में यदि सेंसरशिप होगी, ये बताया जाएगा कि लड़कियों की इज्जत करना चाहिए तो देश में निर्भया जैसी घटनाएं नहीं होगी। ये ज्यादा जरूरी है।

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