देख-रेख के अभाव में खंडहर हो रहा किला
गिन्नौरगढ़ किला सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। देख-रेख के अभाव में किला खंडहर में तबदील होता जा रहा है। आस-पास गांव के लोग यहां खजाने की तलाश में भी आते रहे हंै और उन्होंने किले में काफी तोड़-फोड़ व खुदाई की है। वन विभाग के नियम इस विरासत को बचाने में बड़ी बाधा बन रहे हैं। पुरातत्व विभाग और वन विभाग दोनों को मिलकर ही इसे बचाने के प्रयास करना चाहिए, ताकि यह धरोहर बची रहे।
किले का इतिहास
बताते हैं कि गिन्नौरगढ़ किले का निर्माण गौंड महाराजा ने 13वीं शताब्दी के आसपास कराया था। यहां अंतिम शासिका रानी कमलापति थी, जिसकी सुंदरता की चर्चा आज भी होती है। दिवंगत पति के रिश्तेदार चैनशाह के षड्यंत्रों से बचने विधवा कमलापति पुत्र को लेकर गिन्नौरगढ़ के किले में आकर छुपी थी। बताया जाता है कि कमलापति के पति की हत्या चैन शाह ने धोखे से जहर देकर की थी।
जिससे बचने रानी कमलापति ने इस्लामनगर के नवाब दोस्त मोहम्मद खान से मदद मांगी थी और बाद में यह किला मोहम्मद खान के अधिकार में चला गया था। वहीं कुछ लोग बताते हैं कि किले का निर्माण परमार वंश के राजाओं ने किया था। इसके बाद निजाम शाह ने किले को नया रूप प्रदान कर इसे अपनी राजधानी बनाया था। गौंड़ शासन की स्थापना निजाम शाह ने की थी। परमार व गौंड शासकों के बाद मुगल एवं पठानों ने भी यहां शासन किया। किले की मूर्तियां परमार कालीन बताई जाती हैं।
राष्ट्रीय स्मारक घोषित नहीं हो सका यह किला
बताया जाता है कि पांच साल पहले यह किला राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित होते-होते रह गया। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और राज्य पुरातत्व विभाग के संरक्षित स्मारकों की सूची में नहीं है। पांच साल पहले संस्कृति विभाग ने राष्ट्रीय महत्व स्मारक के रूप में पहचान की थी, तब थोड़ा बहुत सुधार किया गया था।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण मंडल को देशभर से कुल 25 स्मारकों के प्रस्ताव मिले थे। मप्र से यह किला अकेला था। मंडल, राज्य पुरातत्व संचालनालय दोनों ही संरक्षित स्मारक घोषित करना चाहते थे, पर वनक्षेत्र होने की वजह से कोई फैसला नहीं हुआ।