scriptआखिर मध्यप्रदेश कोटे से बाहरी को राज्यसभा टिकट क्यों, क्या यहां योग्य नेता नहीं..? | After all, why Rajya Sabha ticket to outsiders from Madhya Pradesh quo | Patrika News

आखिर मध्यप्रदेश कोटे से बाहरी को राज्यसभा टिकट क्यों, क्या यहां योग्य नेता नहीं..?

locationभोपालPublished: Sep 18, 2021 07:58:32 pm

——————————-बड़ी बहस : राज्यसभा चुनाव में मध्यप्रदेश के हितों की अनदेखी- मुद्दा बाहरी मुरूगन को टिकट का——————————— भाजपा में उठ रहे सवाल, वरिष्ठ नेता इसके खिलाफ, चाहते हैं कि प्रदेश के ही नेता को मिले मौका———————————–

bjp_flags.jpg

BJP

Jitendra Chourasiya, भोपाल। मध्यप्रदेश में राज्यसभा की खाली सीट पर भाजपा ने तमिलनाडू भाजपा के अध्यक्ष व केंद्रीय राज्यमंत्री एल मुरूगन को उम्मीद्वार घोषित कर दिया है। इससे मध्यप्रदेश के कोटे से तमिलनाडू के मुरूगन राज्यसभा में जाएंगे। इस फैसले पर सवालिया निशान खड़ा हो गया है। वजह ये कि मध्यप्रदेश के हितों को दरकिनार करके बाहरी राज्य के नेता को सीट देना प्रदेश की जनता को अनदेखा करना माना जा रहा है। मुरूगन राज्यसभा में क्या मध्यप्रदेश का मुद्दा उठा पाएंगे या पूरे कार्यकाल में कभी मध्यप्रदेश की कोई बात कर पाएंगे? इससे पहले भी कई नेताओं को मध्यप्रदेश से टिकट दिया गया, लेकिन बाहरी नेताओं की पूरी सियासत उनके राज्य या राष्ट्रीय मुद्दों की होती है। इसलिए मध्यप्रदेश के कोटे से उनको टिकट देना ठीक नहीं माना जा रहा है। यंू तो राजनीतिक तौर पर पहले भी ऐसा होता रहा है, लेकिन यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या मध्यप्रदेश का कोई नेता भाजपा को इस टिकट के लायक नहीं मिला, जो बाहरी नेता को टिकट दिया गया।
———————–
ऐसी परंपराएं क्यों?
राजनीतिक पार्टियां सियासी नफे-नुकसान के हिसाब से बाहरी व्यक्ति को भी मध्यप्रदेश से टिकट देती रही है, लेकिन इस परंपरा पर सवाल उठ रहे हैं। वर्तमान में भाजपा को मध्यप्रदेश में उपचुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव तक और स्थानीय गुटों के गणित तक किसी भी प्रादेशिक नेता को टिकट देने से भाजपा को कोई नफा या नुकसान नहीं है। इस कारण मध्यप्रदेश से किसी को टिकट नहीं दिया गया।
————————-
अभी ये दो बाहर के-
अभी एमजे अकबर कर्नाटक के होने के बावजूद मध्यप्रदेश के कोटे से हैं। इसी तरह धमेंद्र प्रधान भी उड़ीसा के होने के बावजूद मध्यप्रदेश कोटे से राज्यसभा में हंै। इसी तरह पूर्व में भी अनेक नेताओं को मध्यप्रदेश से मौका दिया गया। जबकि, उनका प्रदेश से न कोई नाता रहा और न कभी उन्होंने मध्यप्रदेश के हितों को उठाया। मध्यप्रदेश से टिकट के बावजूद वे पूरे कार्यकाल अपने मूल-राज्य की सियासत ही करते रहें। इनमें प्रधान का कुछ जुड़ाव मध्यप्रदेश से हैं, लेकिन वे भी यहां की सियासत नहीं करते। न यहां के मुद्दों को प्रमुखता देते हैं।
———————–
ऐसा है संख्या का गणित-
मध्यप्रदेश से राज्यसभा के लिए 11 सीट हैं। इनमें से दस सीट अभी भरी हैं, जिनमें सात पर भाजपा और तीन पर कांग्रेस काबिज हैं। एक सीट थावरचंद गेहलोत के इस्तीफा देने से खाली है। विधानसभा में स्पष्ट बहुमत के कारण इस खाली सीट पर भाजपा का कब्जा लगभग तय है। इस कारण कांग्रेस ने उम्मीद्वार उतारने से भी कदम पीछे खींच लिए हैं। इस साल अब कोई राज्यसभा सीट खाली नहीं होना है। इससे मध्यप्रदेश से पूर्व ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा में भेजा गया है।
———————–
एक्सपर्ट व्यू : गलत फायदा ले रही राजनीति, बदली जाए ये परंपरा…
Jitendra Chourasiya,
संघीय विधायिका का ऊपरी भाग संवैधानिक बाध्यता के चलते राज्य हितों की संघीय स्तर पर रक्षा करने वाला बनाया जाता है। इसी सिद्धांत के चलते राज्य सभा का गठन हुआ है। इसी कारण राज्य सभा को सदनों की समानता के रूप में देखा जाता है, जिसका गठन ही संसद के द्वितीय सदन के रूप में हुआ है, लेकिन बाहरी नेता को लाएंगे तो संबंधित राज्य के हितों की रक्षा कैसे हो पाएगी। ये परंपरा बरसों से है कि किसी प्रमुख नेता को राज्यसभा में लाने के लिए उसके पैतृक राज्य के अलावा किसी अन्य राज्य से मदद ली जाती है। ये व्यवस्था किसी प्रमुख नेता के संसद में छूट न जाए, इसके लिए लागू की थी। देश के लिए विजनरी नेता को संसद में लाने के लिए यह व्यवस्था हुई थी, लेकिन अब नेताओं को उपकृत करने के लिए राज्य बदलकर संसद में लाना शुरू किया गया। कोई नेता नाराज है, तो उसे इस तरह उपकृत कर लाने लगे। जिस राज्य से बाहरी नेता को ला रहे हैं, उस राज्य के मूल निवासी नेता का क्या होगा, इसकी कोई व्यवस्था नहीं। इसलिए कोई फार्मूला तय हो कि यदि एक व्यक्ति बाहर से आ रहा है, तो फिर उस राज्य से दूसरे को लाए। मुरूगन का स्वागत है, लेकिन हमारे मध्यप्रदेश में न विधायक जानते न कोई और। केवल ऊपरी आदेश से सब एक साथ खड़े हो गए। इससे राजनीतिक गुणवत्ता का क्या हुआ। ऐसा भी हो सकता है कि कभी बाहर के नेता को सीएम बना दें, ये ठीक नहीं है। ऐसा अपभ्रंश और है कि छह महीने में चुनाव लडक़र आ जाईये तो मंत्री पद नहीं जाएगा। कुर्सी पर बैठकर चुनाव लडऩा आसान होता है। इसलिए ये गलत है। इसी तरह बाहर के नेता के आने से मध्यप्रदेश के नेताओं पर कुठाराघात हुआ है। आईएएस में बाहर के अफसर आते हैं, लेकिन कोटा तय रहता है। ऐसे ही कोटा राजनीति में भी होना चाहिए। राजनीति ज्यादा ही सुविधा ले रही है। नेता ऊपर से थोपे जा रहे हैं। यह ठीक परंपरा नहीं है। तमिलनाडू में मध्यप्रदेश के नेता नहीं जा रहे, तो फिर मध्यप्रदेश कोटे में वहां के नेता क्यों लाए जाए। हम एक है और हमारा देश एक है, लेकिन मध्यप्रदेश के कोटे से बाहर का नेता क्यों जाना चाहिए। मूल निवासी को मौका मिलना चाहिए। वे यदि अपने राज्य में जीतने लायक नहीं है, तो फिर दूसरे राज्य से क्यों संसद में ला रहे। रंग देने से कोई शेर नहीं हो जाता। ये परंपरा बदली जानी चाहिए। मूल निवासी नेताओं को आवाज उठानी चाहिए। मिलकर आवाज उठानी चाहिए।
– भानू चौबे, वरिष्ठ पत्रकार
——————————-
अभी ये मप्र से राज्यसभा सांसद-
भाजपा से-
एमजे अकबर
धर्मेंद्र प्रधान
ज्योतिरादित्य सिंधिया
अजय प्रताप सिंह
सुमेर सिंह सोलंकी
कैलाश सोनी
संपत्तिया उइके।
——
ये कांग्रेस से-
राजमणि पटेल
दिग्विजय सिंह
विवेक तंखा
—————————-
ऐसा है चुनाव का शेड्यूल : वोटिंग 4 को….
राज्यसभा सीट पर चुनाव के लिए 22 सितम्बर तक नामांकन भरे जा सकेंगे। नाम वापसी की लिए 27 सितम्बर दोपहर तीन बजे तक का समय निर्धारित है। मतदान 4 अक्टूबर सुबह 9 से 4 बजे तक है। इसके बाद मतगणना रखी गई है।
—————————–
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो