लोकसभा चुनाव के मद्देनजर दबाव की राजनीति भी शुरू हो गई है। इसमें कोशिश है कि सरकार चुनाव पहले ही इसकी शुरूआत कर दें। सरकार भी इसके नफे-नुकसान के आकलन में जुट गई है।
दरअसल, सुप्रीमकोर्ट की पांच जजो की संविधान पीठ का फैसला आने के बाद से अजाक्स और सपाक्स इसे अपने हिसाब से लागू करने की मशक्कत में लगे हैं। इस कड़ी में अजाक्स ने बीते दिनों मुख्यमंत्री कमलनाथ और मुख्य सचिव एसआर मोहंती को अपना पक्ष रखा है। अजाक्स की कोशिश है कि जो प्रमोशन अटके हुए हैं, उसे जल्द शुरू किया जाए।
इसे लेकर कानूनी पहलू भी अजाक्स ने सीएम को बताए हैं। इसके चलते कमलनाथ ने इस मसले की फाइल को तलब कर लिया है। इसके तहत यह आकलन किया जा रहा है कि इसे लागू करने या न करने से क्या फायदे और नुकसान है।
दो महीने बाद लोकसभा चुनाव होना है, इस कारण चुनावी नजरिए से भी इस मुद्दे का अध्ययन शुरू हो गया है।
जीएडी दे चुका है फाइल-
प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे को लेकर सामान्य प्रशासन विभाग पहले ही फाइल भेज चुका है। इसमें सुप्रीमकोर्ट के फैसले और मौजूदा स्थिति को दर्शाया गया है। इसके अलावा खाली पद और सेवानिवृत्ति की स्थिति को भी बताया गया है।
इधर, आर्थिक आधार का नया पेंच-
दूसरी ओर आर्थिक आधार पर आरक्षण का नया पेंच भी आ चुका है। केंद्र सरकार के इसे लागू करने के एलान के बाद मध्यप्रदेश सरकार ने भी इस पर मशक्कत शुरू की।
लेकिन, लोकसभा चुनाव की तैयारी के मद्देनजर फिलहाल सीएम इसे लेकर रोडमैप तैयार नहीं कर पाए हैं। चुनाव के नजरिए से इसका आकलन भी होना है कि इसका कितना फायदा प्रदेश की कांग्रेस सरकार को मिलेगा या इसका नुकसान होगा। इसके बाद ही इस मामले में कदम उठाए जाएंगे।सेवानिवृत्ति उम्र बढ़ाने का फायदा-
कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की उम्र ६० साल से ६२ साल करने के कारण अभी प्रमोशन न होने के बावजूद कर्मचारियों का नुकसान नहीं हो रहा है। सेवानिवृत्ति की उम्र जब नहीं बढ़ाई गई थी, तब तक २५ हजार से ज्यादा कर्मचारियों के प्रमोशन का लाभ लिए बिना सेवानिवृत्ति होने का आकलन है। लेकिन, पिछली भाजपा सरकार ने चुनाव के ठीक पहले सेवानिवृत्ति की आयु में दो साल की वृद्धि कर दी थी।
—
सुप्रीमकोर्ट ने ये दिया था फैसला- सुप्रीमकोर्ट ने निर्णय दिया था कि राज्यों को पिछड़ेपन का डाटा जुटाने की जरूरत नहीं है। दरअसल, केंद्र और राज्य सरकारें 12 साल पुराने एम नागराज केस से जुड़े फैसले को प्रमोशन में आरक्षण देने में बाधा बता रही थीं। 2006 के फैसले में पांच जजों की बेंच ने कहा था कि एससी-एसटी वर्ग को प्रमोशन में आरक्षण देना अनिवार्य नहीं है। ऐसा करने के इच्छुक राज्यों के लिए कुछ शर्तें रखी गई थीं। इसमें सितंबर २०१८ में सुप्रीमकोर्ट की पांच जजों की पीठ ने अब इसमें पिछड़ेपन का डाटा जुटाने की अनिवार्यता हटा दी थी।