इन प्रावधानों को हटाने के लिए हर बार आपत्तियां दर्ज कराई जाती हैं, लेकिन इनकी कोई सुनवाई नहीं होती और गाइडलाइन लागू कर दी जाती है। क्रेडाई ने भी इन उपबंधों को खत्म करने की मांग उठाई है, लेकिन इन उपबंधों पर न तो आपत्तियां बुलाई जाती हैं और न इनमें कोई संशोधन होता है।
के्रडाई के प्रवक्ता मनोज सिंह मींक के अनुसार गाइडलाइन के उपबंधों के कारण रजिस्ट्री दोगुनी तक महंगी हो जाती है। हमारी मांग है कि उपबंध अब बिल्कुल खत्म होना चाहिए। इससे रियल एस्टेट में जो पैसा फंसा हुआ है, वह रिलीज होगा। रजिस्ट्रियों की संख्या भी बढेग़ी। जो निवेश दूसरे राज्यों में जा रहा है वह भी वापस आएगा। रोजगार भी बढ़ेगा। वर्ष 2019-20 की कलेक्टर गाइडलाइन बनाने का काम अभी जारी है। इसमें भी पंजीयन अमला कई क्षेत्रों में फिर से रेट बढ़ाने की तैयारी कर रहा है।
उपबंधों के प्रावधान जो करते हैं परेशान
– उपबंधों में कृषि भूमि को दो हिस्सों में बांटकर रजिस्ट्री के लिए बाजार मूल्य का आकलन किया जाता है। उपबंधों में यह प्रावधान है कि जब जमीन का क्षेत्रफल 1 हजार वर्ग मीटर से अधिक हो तो पहले 1 हजार वर्ग मीटर तक विकसित भूखंड की दर से और शेष डायवर्टेड जमीन के लिए कृषि भूमि की अधिकतम दर का डेढ़ गुने की दर से और डायवर्टेड जमीन नहीं होने पर कृषि भूमि की दर से मूल्यांकन किया जाएगा।
– उपबंधों के अनुसार रजिस्ट्री के समय फ्लैट के बाजार मूल्य का आकलन भी सुपर बिल्ट अप एरिया अर्थात इसमें सार्वजनिक एरिया जोडक़र किया जाता है। इस प्रकार यदि किसी का फ्लैट एक हजार वर्ग फीट का है , जो उसने खरीदा है तो उसे रजिस्ट्री के समय लगभग डेढ़ हजार वर्ग फीट पर स्टांप शुल्क देना पड़ रहा है।