दरअसल कोरोना पेशेंट्स पर दवा माइक्रो बैक्टीरियम डब्ल्यू का एम्स (AIIMS) भोपाल में ट्रायल किया जा रहा था। इस दवा का उपयोग कुष्ठ (Leprosy) और कैंसर में किया जाता है। शुरुआत में नताजों को देखते हुए देश के 4 एम्स अस्पतालों में इसका ट्राइल किया जा रहा था लेकिन अब इसका प्रभाव अनुकूल नहीं मिलने से तुरंत सभी एम्स में इसका प्रयोग रोकने के निर्दश दिये गये हैं। शुरआत में यह उम्मीद जागी थी कि इस दवा से कोरोना के इलाज़ में सफलता मिल सकती है।
भोपाल एम्स में माइक्रो बैक्टीरियम डब्ल्यू दवा के मरीजों पर हो रहे ट्रायल के लिए अमेरिका से भी मंजूरी मिल चुकी थी। अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रिेशन को इस ट्राइल की रिपोर्ट भेजी गई थी, उसके बाद मंजूरी मिली थी। एम्स में माइक्रो बैक्टीरियम डब्ल्यू को कोरोना पॉजिटिव हो चुके मरीजों को दो वर्गो में बांट कर दिया जा रहा था। पहले वर्ग में कम गंभीर मरीज और दूसरे वर्ग में गंभीर मरीजों को लिया गया था। दोनों मरीजों को दवा कि निश्चित खुराक देकर उनका ऑब्जर्वेशन किया जा रहा था। लेकिन ट्राइल पूरा नहीं हो सका। एम्स भोपाल निदेशक डॉ.सरमन सिंह ने बताया इस दवा का प्रयोग मरीजों की रोग प्रतिरोधन क्षमता बढ़ाने के लिए किया जा रहा था।
देश प्रदेश में कोरोना के खिलाफ जंग में फिर इस उम्मीद ने भी दम तोड़ दिया है। इससे पहले डॉक्टर्स को उम्मीद थी कि माइक्रो बैक्टीरियम डब्ल्यू (mw) के इस ट्रायल के ट्राइल के बाद मरीजों का इलाज़ किया जा सकेगा। बोपाल एम्स में फस्ट फेज में इसके सकारात्मक प्रभाव भी दिखाई दिये थे और सरकार ने इसी बीच ट्रायल में एम्स दिल्ली, पीजीआई चंडीगढ़ और एम्स रायपुर भी शामिल कर दिया। रायपुर एम्स में मरीजों पर आये मनकारात्मक प्रभाव के बाद आईसीएमआर ने इस ट्रायल को रोक लगी दी।