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भोपाल

अकेले ही स्मृतियों के सहारे जीता रहा होरी

शहीद भवन में चल रहे तीन दिवसीय नाट्य महोत्सव ‘जिंदगी के रंग कई रेÓ का समापन

भोपालAug 07, 2018 / 08:19 am

hitesh sharma

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अकेले ही स्मृतियों के सहारे जीता रहा होरी

भोपाल। शहीद भवन में रविवार को जिंदगी के कई रंग रे नाट्य समारोह के अंतिम दिन दो नाटक स्मृति का पुजारी और मौत एक मध्यातंर का मंचन हुआ। स्मृति का पुजारी 45 मिनट का नाटक है।
इसमें 12 कलाकारों ने ऑनस्टेज काम किया है। नाटक के माध्यम से रिश्तों के महत्व को समझाया। इस नाटक का निर्देशन अशोक बुलानी ने किया है। वहीं तेजेन्द्र शर्मा लिखित नाटक मौत एक मध्यांतर का निर्देशन आलोक गच्छ ने किया।
पति देता है जिंदगी जीने की सीख

नाटक स्मृति का पुजारी होरी और सरला की कहानी है। अचानक सरला की मौत हो जाने के बाद होरी का जीवन बदल जाता है। मायूस होकर वह पत्नी की स्मृतियों में जीवन बिताने लगता है। दोस्त और परिवार वाले उसे दूसरी शादी करने के लिए कहते हैं, लेकिन वह सभी की बात टाल देता है।
वह कहता है कि वह स्मृति का ही पुजारी है। एक दिन गांव में एक हैड मिस्ट्रेस आती है, जो होरी से शादी करने को तैयार हो जाती हैं। होरी भी उसकी खूबसूरती से प्रभावित होकर शादी के लिए हां कह देता है। अंत में होरी को सरला की याद आती है और उसे खुद से किया वादा भी याद आता है, जिसके बाद वो शादी के लिए मना कर देता है और हमेशा के लिए स्मृति का पुजारी बनकर रह जाता है।
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मौत एक मध्यांतर

अगली प्रस्तुति मौत एक मध्यांतर की हुई। नाटक में भावना तहलियानी ने एकल प्रस्तुति दी। बीस मिनट की इस प्रस्तुति में एक घर में पति और पत्नी रहते हैं। पति को अंतिम चरण का पेन्क्रियास कैंसर हो जाता है। पति का दर्द और दुख देखकर पत्नी बहुत रोती है। तब पति कहता है कि तुम अपना जीवन अच्छे से व्यतित करो, किसी के मरने से उम्र कम नहीं होती और कोई जीना नही छोड़ता है।

जीवन में एक पल का भरोसा नहीं, संग्रह सौ साल का करते हैं

कार्यक्रम में लघु कथा का पाठ किया गया। इसमें शांति लाल जैन ने व्यंग्य रात जो रात नहीं रही में ट्रेन यात्रा का बारे में बताया। इसके बाद कड़कड़ाती ठंड का पाठ किया। अशोक मनवानी ने सुंदर अगनानी की कहानी सामान सौ बरस का पाठ किया। कथा की शुरुआत सौहार्द की बैठक से होती है। व्यंग्य में बताया गया कि मंच पर सज्जा करते समय भाषण देने, माला पहनाने और अतिथि का स्वागत करने को लेकर आयोजकों में झगड़ा हो जाता है।

वहीं सामान सौ बरस का एक ऐसे बुजुर्ग की कहानी है जो अमीर होने के बाद भी कंजूस होता है। एक दिन उसका सामान एक युवती से होता है। वह समझाती है कि जीवन में अगले पल का भरोसा नहीं है, ऐसे में तुम इतना संग्रह क्यों कर रहे हैं। जीवन को हंसी-खुशी जीओ। युवती उसे समझाती है। जब तीन दिन बाद वह उससे मिलने उसके घर पहुंचती है पता चलता है कि उसकी मौत हो चुकी है।

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