मानवीय गलतियों को भी खत्म कर देगी रिसर्च
डॉ. कल्ला का कहना है कि हाईवोल्टेज इंसूलेटर का उपयोग बिजली सप्लाई के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए 11 केवी की लाइन पर 70 हजार वोल्ट का करंट प्रवाहित किया जाए तो वह बहता है। हवा में करंट बहाए जाने को फ्लैश ओवर वोल्टेज कहा जाता है। इसके लिए जिन इंसूलेटर का उपयोग किया जाता है उसे निर्माण के समय टेस्ट किया जाता है कि कहीं ये खराब तो नहीं है। अगर ये खराब होंगे तो लो वोल्टेज पर ही फ्लैश आ जाएगा। फैक्ट्री में इन्हें ऑपरेटर टेस्ट करता है। इस दौरान उसे करंट लगने का खतरा बना रहता है। हमने जो तकनीक विकसित की है उसमें लैब में केबल के अंदर के करंट की जांच की जा सकती है कि इंसूलेटर में फ्लैश आ रहा है या नहीं। इससे ऑपरेटर की जरूरत भी खत्म हो जाएगी। ये मशीन फॉल्ट टेस्टिंग यानी मानवीय गलतियों को भी खत्म कर देगी।
कम स्पीड में भी बन सकेगी बिजली
डॉ. कल्ला ने बताया कि मैंने आइआइटी दिल्ली से पढ़ाई की है। उस समय मैंने सिंगल फेस वाली पानी की मोटर को जनरेटर में बदलने के प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया था। अब मुझे इस तकनीक का पेंटेंट मिल चुका है। वर्तमान में जनरेटर को फिक्स स्पीड में चलाने पर बिजली बनती है। मेरे बनाए जनरेटर में स्पीड कम या आधी रहने पर भी बिजली बनती रहती है। इसमें मैंने वाइडिंग को मोटर के स्थिर हिस्से में लगाया है, जबकि सामान्य जनरेटर में घूमने वाले हिस्से में लगाया जाता है। इससे घर्षण होने से फॉल्ट का खतरा रहता है। इससे मेंटनेंस भी ज्यादा हो जाता है। इसमें हवा और डीजल दोनों की मदद से बिजली बनाई जा सकती है, जबकि सामान्य जनरेटर में हवा से बिजली नहीं बन सकती क्योंकि वो फिक्स स्पीड पर ही बिजली बनाता है।