अमृत मिशन की गाइडलाइन में नालियों का प्रावधान नहीं है। वर्षा जल निकासी वाले नालों के निर्माण के नाम पर ही केंद्र से राशि मंजूर हुई है। अमृत में सीवरेज सिस्टम का जिक्र है, जो अलग तरह से बनता है।
130 करोड़ खर्च होने के बावजूद जलभराव से राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। नालियां गली का पानी तक नहीं निकाल पाएंगी। इन्हें बड़ा नाला बनाकर चैनेलाइजेशन नहीं किया तो पानी ठहरा रहेगा। शहर में जलभराव की स्थिति बनती है। बारिश के समय महापौर को सेफिया कॉलेज रोड पर घुटने तक भरे पानी में कुर्सी डालकर बैठने की नौबत आ गई थी।
नरेला विधानसभा के चांदबड़, सेमरा, स्टेशन क्षेत्र से लेकर द्वारका नगर में पातरा नाले से काफी पानी आता है। शहर के 70 फीसदी क्षेत्रों का बारिश का पानी यहां आता है और जलभराव की स्थिति बनती है। साल 2006 में बाढ़ का पानी मकानों की पहली मंजिल तक पहुंच गया था। ऐसे में नए नाले बनाकर या पुराने को दुरुस्त कर आपस में जोड़कर बारिश के पानी की निकासी व्यवस्था मजबूत करने यहां 105 करोड़ रुपए की राशि मंजूर की थी।
अमृत प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन का जिम्मा अधीक्षण यंत्री पीके जैन के साथ क्षेत्रीय सहायक यंत्री के पास है। इन्हें इसे देखना था, लेकिन मनमर्जी से काम कराने में इन्होंने सहमति दी। इससे नाले की जगह नालियां बन गई। जैन से जब इस गड़बड़ी की वजह पूछी गई तो उन्होंने जवाब देने से इनकार कर दिया। पंजाबी बाग के रहवासियों के विरोध के बाद जांच हुई, काम रद्द भी किए, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। नियमों से हटकर काम करने के बावजूद भुगतान भी कर दिया गया।
केंद्र सरकार की जेएनएनयूआरएम स्कीम के तहत शहर के 11 नालों के चैनेलाइजेशन का दावा किया गया था। इस पर 136 करोड़ रुपए खर्च किए थे, लेकिन स्थिति ये है कि ये नाले आपस में अब तक नहीं जुड़ पाए हैं। बारिश में दिक्कत होती है।
प्रमोद अग्रवाल, पीएस, नगरीय प्रशासन