चुनावों का मौसम आते ही मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल सहित पूरे प्रदेश में चुनावी माहौल धीरे धीरे जोर पकड़ता दिख रहा है।
प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों के अपने अपने किस्से हैं, इनमें से जहां कुछ भाजपा का गढ़ हैं, तो कुछ कांग्रेस का वहीं कुछ व्यक्ति विशेषों का भी गढ़ बनी हुई हैं। ऐसी ही मध्यप्रदेश की सीटों में से एक है भोपाल की लोकसभा सीट…
भोपाल संसदीय सीट पर तीन दशकों से भाजपा का कब्जा बरकरार है। ऐसे में अब की बार लोकसभा चुनाव में भाजपा के इस किले को भेदने के लिए कांग्रेस एक मजबूत दावेदार की तलाश कर रही है।
जानकारों की माने तो भोपाल सीट पर लगातार तीन दशक से भाजपा ही जीत रही है। यह सीट अब भाजपा का गढ़ बन चुकी है। इस सीट से पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती और कैलाश जोशी भी सांसद रह चुके हैं। वहीं कांग्रेस इस बार लोकसभा के लिए किसी बड़े चेहरे की तलाश कर रही है जो भाजपा को कड़ी टक्कर देने के साथ ही भाजपा के इस गढ़ में सेंध भी लगा सके।
वर्तमान स्थिति.VVIP lok sabha constituency..
मध्य प्रदेश की भोपाल लोकसभा सीट से मौजूदा सांसद भाजपा के आलोक संजर हैं। भोपाल सीट का इतिहास शुरुआत में कांग्रेस समर्थित रहा, लेकिन करीब तीन दशक से भारतीय जनता पार्टी का यहां कब्जा है।
1989 के बाद तो कांग्रेस इस सीट से गायब सी हो चुकी है और उसकी हार का अंतर भी लाख से नीचे कभी नहीं रहा।
झीलों का शहर…
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल को झीलों का शहर कहा जाता है, खूबसूरत प्राकृतिक सुंदरता से नवाजे गए इस शहर से भोपाल गैस कांड की त्रासदी भी जुड़ी हुई है, जिसका कुप्रभाव आज तक वायु प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, जल प्रदूषण के रूप में लोग झेल रहे हैं।
यहां की जनसंख्या 26,79,574 है जिसमें से 23 प्रतिशत लोग गांवों में रहते हैं और 76 प्रतिशत लोग शहरों में निवास करते हैं।
भोपाल लोकसभा सीट का दिलचस्प इतिहास.profile of Bhopal lok sabha constituency..
भोपाल में पहले लोकसभा चुनाव में दो सीट थीं, जिन्हें रायसेन और सीहोर के नाम से जाना जाता था। तब सीहोर सीट से कांग्रेस के सैयद उल्लाह राजमी ने उद्धवदास मेहता को शिकस्त दी थी, तो रायसेन सीट से कांग्रेस के चतुरनारायण मालवीय ने निर्दलीय प्रत्याशी शंकर सिंह ठाकुर को मात देकर पहला लोकसभा चुनाव जीता था।
इसके बाद 1957 भोपाल एक सीट हो गई, जिसमें पहली बार मैमूना सुल्तान ने कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया और वे हिंदू महासभा के हरदयाल देवगांव को हराकर सांसद बनी।
वहीं इसके बाद वो 1962 में दोबारा हिंदू महासभा के ओमप्रकाश को हराकर लोकसभा पहुंची।
जबकि 1967 में भारतीय जनसंघ ने अपने प्रत्याशी उतारे और भोपाल सीट पर पहली बार में कब्जा जमा लिया।
लेकिन इस जीत को भारतीय जनसंघ 1971 के अगले चुनाव में बरकरार नहीं रख सकी और कांग्रेस नेता और देश के पूर्व राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने यहां शानदार जीत दर्ज की।
वहीं इसके बाद 1977 में यहां पर भारतीय लोकदल के नेता आरिफ बेग ने शंकरदयाल शर्मा को हरा दिया।
1980 में फिर से इस सीट पर शंकरदयाल शर्मा ने कब्जा किया और आरिफ बेग को हराया।
1984 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने सीट पर कब्जा बनाए रखा और केएन प्रधान यहां से एमपी बने।
यहां से बदल गया इतिहास…
वहीं साल 1989 में कांग्रेस की इस सीट को सबसे पहले पूर्व मुख्य सचिव रहे सुशीलचंद्र वर्मा ने इस सीट पर भाजपा की ओर से जीत दर्ज की।
इसके बाद वे लगातार 1998 तक इस सीट से सांसद रहे।
इसके बाद 1999 में भाजपा नेत्री उमा भारती और 2004 और 2009 में कैलाश जोशी ने यहां जीत दर्ज की और साल 2014 के चुनाव में यहां से आलोक संजर सांसद बने।
संजर का लोकसभा में प्रदर्शन…
दिसंबर 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 5 सालों के दौरान आलोक संजर की लोकसभा में उपस्थिति 96 प्रतिशत रही और उन्होंने 121 डिबेट में हिस्सा लिया है और 392 प्रश्न पूछे हैं।
वैसे तो भोपाल में बीजेपी के किले को गिराना आसान काम नहीं है, लेकिन जानकारों की मानें तो इस वक्त सियासी हालात बदले हुए हैं, राज्य में लंबे शासन के बाद भाजपा का राज खत्म हो गया है।
तो वहीं कांग्रेस राज्य में सरकार बनाने के बाद आत्मविश्वास से भरी हुई है, ऐसे में क्या एक बार फिर से भोपाल की जनता कमल पर बटन दबाएगी या फिर कुछ चौंकाने वाले नतीजे हमें देखने को मिलेंगे, ये देखने वाली बात होगी।
साल 2014 के चुनावों में यहां कुल वोटरों की संख्या 19,56,936 थी जिसमें से केवल 11,30,182 लोगों ने अपने मतों का प्रयोग किया था, जिसमें पुरुषों की संख्या 6,39,683 और महिलाओं की संख्या 4,90,499 थी।