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ट्राइबल आर्ट जानने अंग्रेज अफसर ने की थी आदिवासी युवती से शादी

locationभोपालPublished: Dec 02, 2018 07:32:47 am

ट्राइबल आर्ट बचाने को समर्पित इंटरनेशनल आर्टिस्ट आनंद श्याम का पूरा परिवार

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ट्राइबल आर्ट जानने अंग्रेज अफसर ने की थी आदिवासी युवती से शादी

भोपाल. ट्राइबल आर्ट सिमटती जा रही है, लेकिन इसे बचाने के लिए इंटरनेशनल आर्टिस्ट आनंद श्याम पूरे कुनबे और सहयोगियों के साथ जुटे हुए हैं। जनजातीय जीवन से यह आर्ट इतने करीब जुड़ी थी कि इसे बारीकी से जानने के लिए वुड कार्विंग के कद्रदान अंग्रेज वी एल्विन ने आनंद श्याम की बुआ सास लीला से शादी की थी।
डिंडोरी जिले के मूल निवासी आनंद श्याम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ट्राइबल आर्ट के क्षेत्र में बड़ा नाम हैं। उनके पिता सैन्य सेवा में थे और वुड कार्विंग आर्ट के अपने समय के बेहतरीन कलाशिल्पी थे। उनका कहना है कि मिट्टी की महक बसी है इस कला को नहीं बचाया गया तो प्रदेश की अनमोल विरासत ही मिट जाएगी…। वे अपने पूरे परिवार और कलाप्रेमियों के साथ इस आर्ट को बचाने में जूझ रहे हैं।

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बेतवा अपार्टमेंट के पास रहने वाले आनंद के चाचा स्व. जनगण सिंह श्याम भी अंतर्राष्ट्रीय कलाकार थे, जिनकी वर्ष २००१ में जर्मनी प्रवास के दौरान हुई मृत्यु आज तक रहस्य बनी हुई है। उन्हें भी कई इंटरनेशनल अवॉर्ड मिले थे। जनगण सिंह के बेटे मयंक श्याम और बेटी जापानी श्याम आज तक इस कला को आगे बढ़ा रहे हैं। कलाशिल्पी आनंद श्याम की पत्नी कलावती श्याम, बेटा संभव सिंह श्याम, बेटी भारती व दामाद ओमप्रकाश और आनंद के भाई विजय व सरमन श्याम सभी ट्राइबल आर्ट को जीवन समर्पित कर चुके हैं।

बेतवा अपार्टमेंट के पास रहने वाले आनंद के चाचा स्व. जनगण सिंह श्याम भी अंतर्राष्ट्रीय कलाकार थे, जिनकी वर्ष २००१ में जर्मनी प्रवास के दौरान हुई मृत्यु आज तक रहस्य बनी हुई है। उन्हें भी कई इंटरनेशनल अवॉर्ड मिले थे। जनगण सिंह के बेटे मयंक श्याम और बेटी जापानी श्याम आज तक इस कला को आगे बढ़ा रहे हैं। कलाशिल्पी आनंद श्याम की पत्नी कलावती श्याम, बेटा संभव सिंह श्याम, बेटी भारती व दामाद ओमप्रकाश और आनंद के भाई विजय व सरमन श्याम सभी ट्राइबल आर्ट को जीवन समर्पित कर चुके हैं।
ये मिले अवॉड्र्स

आनंद श्याम को वर्ष १९९५ में इंदिरा गांधी न्यास, नई दिल्ली से स्कॉलरशिप प्रदान की गई। वर्ष १९९९ में स्टेट अवॉर्ड से उन्हें सम्मानित किया गया। वर्ष २००० से तीन वर्षों के लिए नेशनल फेलोशिप दी गई। वर्ष २००५ में चिल्ड्रन बुक सोसाइटी, नई दिल्ली द्वारा बेस्ट इलस्ट्रेशन अवॉर्ड दिया गया।
वर्ष २००९ में स्कॉटलैंड में फिल्म एनिमेशन के लिए इंटरनेशनल अवॉर्ड से नवाजा गया। वर्ष २०१७ में प्रफुल्ल दहनकुर आर्ट फाउंडेशन, मुम्बई द्वारा गोल्ड मेडल और ३५ हजार रुपए की सम्मान राशि प्रदान की गई। एचएसवीएन १९९९, २०००, २००३, २००४ के लिए सांत्वना पुरस्कार और राष्ट्रीय दलित चेतना मंच समेत कई अन्य सम्मान प्राप्त हैं।

दुनियाभर में संग्रहीत हैं उनकी कलाकृतियां

देश-विदेश में सैकड़ों प्रदशर्नियां आयोजित कर ट्राइबल आर्ट का परचम फहराने वाले आनंद श्याम की तमाम कलाकृतियां ग्वालियर, नई दिल्ली, खजुराहो, मुम्बई, चेन्नई, चंडीगढ़, बेंगलुरू समेत भारत की कई निजी कला वीथिकाओं और सरकारी संग्रहालयों में संग्रहीत हैं। इसके सिवा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फ्रांस, रूस, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, स्कॉटलैंड, इंग्लैंड आदि देशों के म्यूजियम्स में उनकी कलाकृतियां सहेज कर रखी गई हैं।

हजारों चिराग रोशन किए

आनंद श्याम अपनी कला से नई पीढ़ी को प्रशिक्षित कर इस कला को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने अपने गोंडी ट्राइबल स्कूल में दस हजार से अधिक बच्चे प्रशिक्षित किए हैं, जो देशभर में जनजातीय कला की अलख जगा रहे हैं। वे दिल्ली, चेन्नई, मुम्बई, अहमदाबाद की आईआईटी के अलावा सीबीएसई आदि अन्य बोर्ड के स्कूलों में ट्राइबल आर्ट की ट्रेनिंग दे चुके हैं। करनाल, हरियाणा में कल्पना चावला के स्कूल में भी स्टूडेंट्स को प्रशिक्षण दिया है।

बेजोड़ महिला आॢटस्ट हैं कलावती

डिंडोरी के पाटनगढ़ के ही रहने वाली कलावती के पिता स्व. एस त्रिकाम खेत करते थे। गांव में मिट्टी के घर थे। कलावती अपनी मां ललियाबाई के साथ घर की दीवारों पर भित्ति चित्र बनाना सीखीं। उनके गांव में लाल, पीली, काली, सफेद रंगों की मिट्टी पाई जाती थी। गोबर मिलाकर पांच रंग बना लिए जाते थे। तब बाजारू केमिकल रंगों को वहां के लोग जानते नहीं थे।
शादी के समय उनकी उम्र पांच वर्ष और आनंद की उम्र सात वर्ष थी। दोनों को कलाकारी का शौक था। पन्द्रह वर्षों बाद गौना हुआ, तब दोनों का कलाशिल्प निखरा। पति आनंद की तरह ही कलावती को कई स्कॉलरशिप व सम्मान मिले हैं। उन्होंने अपना कलाशिल्प बच्चों में भी ढाला।

बच्चों ने भी बचा रखी है विरासत

आनंद-कलावती के बच्चों ने इस कला को बचाने और आगे बढ़ाने का क्रम जारी रखा है। बेटा संभव सिंह श्याम जबलपुर, भोपाल, नई दिल्ली, खजुराहो, अमरकंटक, गोवा, छिंदवाड़ा, रतलाम, उज्जैन, मंदसौर, इलाहाबाद, देश के तमाम शहरों के अलावा नेपाल में ट्राइबल आर्ट का परचम लहरा चुका है। क्राफ्ट काउंसिल ऑफ इंडिया ने उसे नेपाल भेजा था।
फाइन आट्र्स में पोस्ट ग्रेजुएट उनकी बेटी भारती श्याम भी ट्राइबल आर्ट में अद्भुत क्षमतावान है। भारती ने भी देश के कई शहरों में शिविर, प्रदर्शनी, प्रतिभाग के माध्यम से इस कला का विस्तार किया।
भारती को नेहरू युवा केन्द्र भोपाल से एड्स दिवस पर राज्य स्तरीय प्रदर्शनी के लिए द्वितीय पुरस्कार वर्ष २००४, गोंडवाना शिक्षा सम्मान वर्ष २०१०, कटनी नवोदय विद्यालय वर्ष २०११, स्वराज भवन जनजातीय संग्रहालय वर्ष २०१३, क्राफ्ट म्यूजियम नई दिल्ली वर्ष २०१३, भारत भवन चित्रकला शिविर एवं प्रदर्शनी वर्ष २०१४ में सम्मानित किया जा चुका है।

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