मध्यप्रदेश के राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने यह गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। दिनेश सदाशिव सोनवाने ने बुरहानपुर के सीएमएचओ डॉ. विक्रम सिंह के पास अक्टूबर 2017 में आरटीआई नियमों के तहत आवेदन दिया था। सोनवाने ने स्वास्थ्य विभाग में वाहन चालकों की नियुक्ति और पदस्थापना संबंधित जानकारी मांगी गई थी। डॉ. सिंह की ओर से सोनवाने को कोई भी जवाब 30 दिन में नहीं दिया गया।
राज्य सूचना आयुक्त की बड़ी कार्रवाई
सोनवाने ने जानकारी नहीं मिलने के बाद प्रथम अपील दायर की थी। इसके बाद प्रथम अपीलीय अधिकारी ने जानकारी देने के आदेश दिए थे। इसके बाद राज्य सूचना आयोग की ओर से डॉ. विक्रम सिंह को लगातार जवाब पेश करने के लिए समन जारी किया जाता रहा। 18 अक्टूबर 2019 से 10 फरवरी 2020 तक पांच समन भेजने के बावजूद डा. विक्रम सिंह न जवाब दे रहे थे और न ही हाजिर हो रहे थे। सूचना आयोग ने स्वास्थ्य विभाग के आयुक्त को भी डा. सिंह की उपस्थिति सुनिश्चित करने के निर्देश दिए थे, लेकिन इस दौरान भी स्वास्थ्य विभाग लापरवाह बना रहा।
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जुर्माना भी लगा
सूचना आयोग ने 16 दिसंबर 2020 को सीएमएचओ डा. सिंह पर 25 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया और स्वास्थ्य आयुक्त को एक माह में जुर्माने की रकम जमा न होने पर डा. विक्रम सिंह के वेतन से काटकर जमा करने के लिए कहा था। 27 अगस्त को तक इस दौरान चार पत्र स्वास्थ्य विभाग को लिखे गए, लेकिन न राशि जमा हुई न ही आयोग के समक्ष डा. विक्रम सिंह की उपस्थिति सुनिश्चित हुई।
राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने इसे मध्यप्रदेश आरटीआई फीस अपील नियम 8(6)(3), 2005 का उल्लंघन मानते हुए कहा कि आयोग के आदेश के बावजूद कार्यवाही न करने से उनकी नियत स्पष्ट झलकती है। आयुक्त ने अपने आदेश में कहा है कि अधिकारी की ओर से जानबूझकर आयोग के आदेश की अवहेलना की गई। इसके बाद राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने तत्कालीन बुरहानपुर सीएमएचओ डा. विक्रम सिंह के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। पांच हजार रुपए का जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी करते हुए इसे इंदौर के डीआइजी को वारंट तामील कराने के भी आदेश दिए हैं।
राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि दोनों अधिकारियों का व्यवहार संसद द्वारा स्थापित पारदर्शी और जवाबदेह सुशासन सुनिश्चित करने वाले आरटीआइ कानून का मखौल उड़ाने वाला है। सिंह ने कहा कि RTI Act, संविधान के अनुच्छेद 19 (1) का भाग होने से हर भारतीय का मूल अधिकार है, पर इन अधिकारियों को आम जनता के मूल अधिकार और कायदे-कानून की भी परवाह नहीं है।
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आयुक्त सिंह ने इन दोनों अधिकारियों की कार्रवाई को आयोग के अपीलीय प्रक्रिया में बाधा पहुंचाने वाला बताया है। राज्य सूचना आयुक्त ने अपने आदेश में कहा कि आयोग इस तरह के RTI एक्ट के लगातार खुलेआम उल्लंघन को मूकदर्शक बनकर नहीं देख सकता है। अगर इस तरह के उल्लंघन को मान्य कर दिया जाए तो RTI कानून मजाक बनकर रह जाएगा।
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क्या है नियम
राज्य सूचना आयुक्त सिंह के मुताबिक RTI एक्ट की धारा 7 (1) के तहत अगर 30 दिन के अंदर जानकारी नहीं मिलती है तो धारा 20 के तहत 250 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से अधिकतम 25 हजार रुपए तक का जुर्माना लगाया जाता है। दोषी अधिकारी को 1 महीने का समय जुर्माने की राशि आयोग में जमा करने के लिए दिया जाता है।
इसके बाद मध्यप्रदेश फीस अपील नियम 2005 में नियम 8 (6) (3) के तहत आयोग दोषी अधिकारी के कंट्रोलिंग अधिकारी को जुर्माने की राशि को वसूलने और साथ में दोषी अधिकारी के खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई के निर्देश देता है। नियम के अनुसार आयोग का आदेश मानना संबंधित कंट्रोलिंग अधिकारी के लिए जरूरी होता है। सिंह ने बताया कि नियम के मुताबिक आयोग जुर्माने की राशि को वसूलने के लिए सिविल कोर्ट की शक्तियों का उपयोग करता है।
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आयोग द्वारा गिरफ्तारी वारंट जारी
राज्य सूचना आयुक्त सिंह ने गिरफ्तारी वारंट जारी करते हुए DIG इंदौर डिवीजन को निर्देश दिए हैं कि आयोग के वारंट की तामील करा कर दोषी अधिकारी डॉ. सिंह को गिरफ्तार कर आयोग के समक्ष 11 अक्टूबर 2021 को दोपहर 12 बजे हाजिर करें। आयोग ने इस वारंट में कहा है कि अगर डॉ. विक्रम सिंह 5 हजार की जमानत देकर अपने आप को आयोग के समक्ष 11 अक्टूबर की पेशी में हाजिर होने के लिए तैयार है तो उनसे जमानत की राशि 5 हजार रुपये लेकर उन्हें आयोग के समक्ष हाजिर होने के लिए रिहा कर दिया जाए।