पहले प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर व अब भोपाल में बढ़ती मरीजों की संख्या ने पूरे प्रदेशवासियों को चिंतित व भयभीत कर दिया है। कोरोना कि इस भयावहता का अंदाजा हमें पूर्व से ही था। मैंने जब कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए 16 मार्च को विधानसभा का बजट सत्र 26 मार्च तक के लिए स्थगित किया तो कुछ जि़म्मेदार महानुभावों ने इसका जमकर उपहास उड़ाया। वह इसे कोरोना नहीं डरोना बताने में लग गये। आज कोरोना की भयावह स्थिति हम सभी के सामने हैं। जिस प्रकार से प्रदेश की राजधानी भोपाल में शासकीय अधिकारियों व कर्मचारियों में कोरोना संक्रमण का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है, उसी से समझा जा सकता है कि मैंने उस समय विधायकों के साथ-साथ उनके संपर्क में आने वाले उनके हज़ारों समर्थक, उनके क्षेत्र की लाखों जनता, सैकड़ों शासकीय अधिकारियों एवं कर्मचारियों व उनसे जुड़े हज़ारों-लाखों आमजन, विधानसभा में कार्यरत व सुरक्षा में लगे बड़ी संख्या में अधिकारी-कर्मचारी गण व सुरक्षा कर्मी व मीडिया के साथियों की सुरक्षा को लेकर यह निर्णय लिया था। शायद उस समय इसका विरोध करने वाले महानुभाब इस सच्चाई को समझ लेते और इस जनहितैषी निर्णय का सिर्फ़ राजनैतिक आधार पर विरोध नहीं करते तो शायद आज प्रदेश को इस स्थिति से बचाया जा सकता था।
जिस समय हमें जिम्मेदार होने के नाते कोरोना से बचाव व सावधानी का संदेश प्रदेशवासियो को देना था, उस समय कुछ लोग इस चुनौती को स्वीकार करने की बजाय इसे डोरोना बताकर इसका उपहास उड़ाते रहे, जिससे जनता में भी इससे बचाव व सावधानी को लेकर ग़लत संदेश प्रसारित हुआ।