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उच्चशिक्षा में भर्ती पर असिस्टेंट प्रोफेसर और अतिथी विद्वान आमने-सामने

locationभोपालPublished: Nov 07, 2019 11:08:32 am

Submitted by:

Arun Tiwari

– उच्चशिक्षा विभाग में नियुक्ति पर विवाद- सरकार का जवाब – पारदर्शिता से कर रहे हैं का
 

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भोपाल : कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति को लेकर उच्च शिक्षा विभाग की प्रक्रिया पर विवाद शुरु हो गया है। पीएससी से चयनित हुए असिस्टेंट प्रोफेसर और १५-२० सालों से कॉलेजों में पढ़ा रहे अतिथी विद्वान आमने-सामने आ गए हैं। अतिथी विद्वान नियम विरुद्ध बताते हुए इस नियुक्ति का विरोध कर रहे हैं तो पीएससी से चयनित उम्मीदवार अतिथी विद्वानों की योग्यता पर ही प्रश्रचिन्ह लगा रहे हैं।
वहीं दूसरी ओर महिला उम्मीदवार महिला आरक्षण नियमों के खिलाफ आंदोलन पर आमादा हो गई हैं। सोशल मीडिया पर शुरु हुआ ये आंदोलन सड़कों पर आने की तैयारी कर रहा है। पीएससी से चयनित उम्मीदवारों की च्वाइस फिलिंग की प्रक्रिया शुरु हो गई है। इस सारे विवाद के बीच सरकार ने साफ कर दिया है कि सारी भर्ती पारदर्शिता और नियमानुसार हो रही है।

– ये है पूरा मामला :
पीएससी ने २०१७ को सरकारी कॉलेजों में साढ़े तीन हजार खाली पद भरने के लिए भर्तियां निकाली थीं। असिस्टेंट प्रोफेसरों की भर्ती के लिए ये परीक्षा २०१८ में आयोजित की गई। हाईकोर्ट के १८ सितंबर २०१९ को आए आदेश के बाद सरकार अब नियुक्तियां दे रही है। पीएससी में चयनित उम्मीदवारों का कहना है कि वे पिछले एक साल से अपनी नियुक्ति के लिए भटक रहे थे।
पीएससी चयनित सहायक प्राध्यापक संघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ प्रकाश खातरकर का कहना है कि पीएससी की रिवाइज लिस्ट जारी हो चुकी है और सरकार अब च्वाइस फिलिंग करा रही है। उन्होंने कहा कि अतिथी विद्वानों के आरोप गलत हैं। मेहनत करने वाले सफल हो जाते हैं और जो परिश्रम नहीं कर पाते वे निराधार आरोप लगाते हैं। अतिथी विद्वानों को तो पढ़ाने के २० अंक अतिरिक्त दिए गए थे और उम्र की सीमा भी नहीं रखी गई थी फिर भी जो पास नहीं हुए वे आरोप लगा रहे हैं।

अतिथी विद्वानों का ये तर्क :
अतिथी विद्वानों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाने वाले डीपी सिंह का कहना है कि असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती परीक्षा में बैकलाग के पदों की गलत गणना की गई,सामान्य वर्ग के पद आरक्षित कर दिए गए। १९९० में जब असिस्टेंट प्रोफेसरों की भर्ती की गई थी तब ८९८ पद आरक्षित थे। २००३ में ८७१, २००६ में ३२६ पद बैकलाग से भरे गए। २००८ में १८० पद बैकलाग के खाली थे तो २०१७ में ४५१ पद कैसे बढ़ गए। १९९० में ८९८ पद आरक्षित थे जबकि अब तक १४०० की भर्ती की जा चुकी है। डीपी सिंह का कहना है कि न्यायालयीन प्रकरणों और विभागीय शिकायतों के निराकरण होने तक इन नियुक्तियों को रोका जाए जिससे अतिथी विद्वानों के साथ न्याय हो सके। अतिथी विद्वानों ने १२ अक्टूबर को भोपाल में बड़े आंदोलन का ऐलान किया है।

1990 को दोहराने का वक्त आ गया :
वहीं असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती परीक्षा में महिला आरक्षण का विरोध करने वाली महिला उम्मीदवार सोशल मीडिया पर आंदोलन की तैयारी कर रही हैं। इन महिलाओं का आरोप है कि महिला आरक्षण नियमों की विसंगति के कारण कई महिला उम्मीदवार चयन से वंचित रह गईं। ये आंदोलन ट्विटर,फेसबुक और वाट्सएप पर शुरु हो चुका है। जल्द ही इसे सड़क पर उतारने की तैयारी है।
पीएससी परीक्षा की पूर्व परीक्षार्थी सुनीता जैन ने अपनी पोस्ट में लिखा है कि १९९० को दोहराने का वक्त आ गया है। उस समय एडॉक पर पढ़ाने वालों ने चार दिन तक लगातार आंदोलन किया और सरकार को उनके आगे झुकना पड़ा। उन्होंने अपनी एक और पोस्ट में लिखा है कि आंदोलन इतना जबरदस्त हो कि सरकार हिल जाए। हर महिला अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराए।

– कमलनाथ सरकार के सुशासन में अभिनव पहल है ये। सुशासित और भ्रष्टाचार मुक्त मप्र की दिशा में अब उच्च शिक्षा में ऑनलाइन के जरिये पूर्ण पारदर्शिता से क्रीड़ा अधिकारी, ग्रन्थपाल और सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति होगी, जगह का चुनाव स्वयं सम्बंधित की पसंद अनुसार मेरिट आधार पर होगा।
– जीतू पटवारी उच्चशिक्षा मंत्री

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