उसका मन पढ़ाई से ज्यादा खेलों में लगता था। आठवीं कक्षा में जब बेटा बमुश्किल फस्र्ट डिवीजन के पास पहुंच सका तो मिसरोद में ब्यूटी पार्लर चलाने वाली माँ गंगा ने एक अहम फैसला लिया। हिमांशु की ताकत और फुर्ती को खेलों में आजमाने का। हिमांशु को खेलों से जोडऩे के लिए तात्या टोपे स्टेडियम भेजना शुरू किया।
बच्चे की कद-काठी देखकर कोच ने उसे बॉक्सिंग खेलने की सलाह दी। हिमांशु ने एक बार जो पॉवर गेम की राह पकड़ी तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। माँ गंगा कहती है कि मेरा बेटा 80-90 परसेंट नहीं ला सकता यह बात जैसे ही मुझे समझ में आई मैं निराश नहीं हुई, आज मुझे बेटे पर गर्व है, अब एक ही इच्छा है वह देश के लिए खेले।