पहला डिप्लोमा कोर्स और दूसरा नर्सरी से ही बच्चों के लिए संस्कृत कोर्स की शुरुआत। जुलाई से जहां ९वीं में चार वर्षीय डिप्लोमा कोर्स पढ़ाया जाएगा, वहीं नर्सरी, केजी और पहली कक्षा से बच्चों को संस्कृत पढ़ाया जाएगा। प्राथमिक कक्षाओं के बच्चों को स्मार्ट क्लास के जरिए संस्कृत ट्यूटोरियल के वीडियो से संस्कृत सिखाया जाएगा। संस्कृत प्रमोशन काउंसिल की मदद से तैयार करवाए गए इन वीडियो में खेल-खेल में संस्कृत सिखाने पर जोर दिया गया है।
अधिकांश वीडियो में मोगली की कहानियों के कैरेक्टर और कार्टून कैरेक्टरों की तर्ज पर संस्कृत के प्राथमिक कोर्स को फिल्माया गया है, जो बच्चों को समझाने में मदद करेगा। इधर, चारों डिप्लोमा कोर्स की खासियत यह है कि इनमें एडमिशन के लिए न तो धर्म का बंधन है और न ही उम्र का। हर वर्ग-धर्म-उम्र के व्यक्ति चारों कोर्स का अध्ययन कर सकता है। विशेषकर ९वीं से १२वीं तक के छात्रों को ध्यान में रखकर यह कोर्स डिजाइन किया गया है।
राज्य शासन ने जुलाई सत्र से चारों डिप्लोमा कोर्स लागू करने की मंजूरी दे दी है। चारों डिप्लोमा कोर्स चार साल के होंगे। इन कोर्स की किताबें विज्ञान, वेद और संस्कृत के मौलिक ज्ञान के आधार पर है। इन कोर्सेस के अध्यापन के लिए आवश्यकतानुसार बाहर से विशेषज्ञ बुलाए जाएंगे। एडमिशन लेने वालों को १५ दिवसीय संस्कृत का मूल कोर्स पढ़ाया जाएगा। इसके बाद दूसरे चरण मेें सभी ३१३ विकासखंड स्तर पर अन्य स्कूलों में इन कोर्सेस की वर्चुअल क्लासेस शुरू की जाएंगी।
यह रहेगा कोर्स में
ज्योतिष में कुंडली-जन्मपत्रिका, हस्तरेखा, फेस रीडिंग और इनकी आंतरिक शाखाएं शामिल हैं। पुरोहित में हिन्दू धर्म के १६ संस्कारों, गृह प्रवेश की विधि, हवन, बेदी की स्थापना दिशा ज्ञान, कवच का पाठ और मंत्रोच्चार के बारे में गहराई से प्रकाश डाला गया है। आयुर्वेद में वायु-कफ-पित्त पर जोर दिया गया है। वास्तु में ऊर्जा के सिद्धांतों को कोर्स में शामिल किया गया है।
संस्कृत के चारों डिप्लोमा कोर्स शुरू होने के बाद कई भ्रांतियां दूर होंगी। इन कोर्स को पढऩे के बाद यह भ्रांति टूटेगी कि पुरोहित कर्म ब्राह्मणों का ही काम नहीं है, इसे कोई भी कर सकता है। जो बच्चा इंजीनियरिंग-ऑर्किटेक्ट बनना चाहता है, वह चार साल का वास्तु डिप्लोमा कोर्स प000000ढ़ेगा तो उसकी इंजीनियरिंग आम छात्रों से अलग रहेगी। कोई डॉक्टर बनना चाहता है और उसने आयुर्वेद डिप्लोमा पढ़ा है तो वह डॉक्टरी में आम डॉक्टरों से अलग होगा। उनके पास संस्कृत में निहित मूल ज्ञान के साथ विज्ञान-बायोलॉजी का भी ज्ञान होगा
-पीआर तिवारी, निदेशक, महर्षि पतंजलि संस्कृत संस्थान