उमा इस समय केन्द्र सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। भारतीय जनता पार्टी से अलगाव के बाद घर वापस लौटीं उमा का जब पार्टी ने ही बाहें फैलाकर स्वागत किया, उस वक्त ये माना जा रहा था कि शायद उमा भारती अब अपनी पुरानी छवि से वापस निकल आईं हैं। जब मोदी सरकार में उमा भारती को कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला उस समय भी इस बात पर मुहर लगती नजर आई थी। लेकिन शायद अपने पुराने वक्त से उमा भारती इतनी जल्दी नहीं निकल पाएंगे।
इसी साल मई में मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की फायर ब्रांड नेता उमा भारती समेत 13 अन्य लोगों पर बाबरी विध्वंस केस में आपराधिक साजिश का मुकदमा चलने की खबर आई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इन नेताओं पर केस चलाने की मंजूरी दे दी। SC ने इलाहबाद हाईकोर्ट के फैसले को बदलते हुए ट्रायल चलाने की अनुमति दी थी। सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने कहा था कि अब इस मामले की डे टू डे सुनवाई होगी और केस लखनऊ की विशेष अदालत में चलेगा।
उमा की भूमिका बाबरी विध्यंस के वक्त उमा भारती बीजेपी की युवा फायर ब्रांड नेता के तौर पर सामने आईं थीं। बाबरी विध्वंस के दौरान बीजेपी के सभी बड़े नेता अयोध्या में थे। उमा भी युवा मोर्चा के हजारों कार सेवकों के साथ अयोध्या में थीं। अयोध्या में बीजेपी नेताओं की मौजूदगी के कई फोटो आज भी तमाम इंटरनेट सर्च इंजन पर उपलब्ध हैं। हालांकि ये लोग आपराधिक षड्यंत्र में शामिल थे या नहीं, इसकी पड़ताल होना बाकी है।
उमा ने कहा था- फांसी पर चढऩे को तैयार हूं
इस खबर के ठीक महीने भर पहले ही नर्मदा सेवा यात्रा में शामिल होने भोपाल आईं उमा ने कहा था कि वे राम मंदिर मुद्द पर किसी भी कोर्ट ट्रायल को झेलने को तैयार हैं। यूपी विधानसभा चुनाव के वक्त भी उमा ने लखनऊ में कहा था कि राम मंदिर के मुद्दे पर मैं जेल जाने के लिए और फांसी पर लटकने के लिए भी तैयार हूं। उमा भारती ने कहा कि राम मंदिर का मुद्दा आस्था का विषय है।
सियासत पर असर
– यदि आप शीर्ष कोर्ट आपराधिक साजिश का मामला उमा समेत 13 नेताओं पर चलाता है तो उमा पर नैतिकता के नाते केंद्रीय पद छोडऩे का सियासी दबाव बढ़ सकता है।
– मध्यप्रदेश में भाजपा का पुनर्जन्म उमा भारती के समय में ही हुआ। करीब डेढ़ साल उमा के हाथ में मध्यप्रदेश की कमान रही। ऐसे में राज्य में उसकी सियासी जड़ों पर भी असर रहेगा।
– शीर्ष कोर्ट ने कहा है कि यदि आपराधिक मामला चलता है तो इस मामले की डे टु डे सुनवाई होगी। ऐसे में उमा सियासत और मंत्रालय के कामों से दूर रहकर कोर्ट में उलझ सकती हैं।
क्या है मामला : कब क्या हुआ
– सन 1992 मे बाबरी मस्जिद गिराने को लेकर दो एफआईआर 197 और 198 दर्ज की गई।
– 197 कार सेवकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई।
– मस्जिद से 200 मीटर दूर मंच पर मौजूद 198 नेताओं के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की गई।
– यूपी सरकार ने 197 के लिए हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से इजाजत लेकर ट्रायल के लिए लखनऊ में दो स्पेशल कोर्ट बनाईं।
– शेष 198 के लिए रायबरेली के कोर्ट में मामला चला।
– 197 के केस की जांच सीबीआई को दी गई जबकि 198 की जांच यूपी सीआईडी ने की।
– 198 के तहत रायबरेली में चल रहे मामले में नेताओं पर 120 बी एफआईआर में नहीं था लेकिन 13 अप्रैल 1993 में पुलिस ने चार्जशीट में आपराधिक साजिश की धारा जोडऩे की कोर्ट में अर्जी लगाई और कोर्ट ने इसकी इजाजत दे दी।
– इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका लगाई गई जिसमें मांग की गई कि रायबरेली के मामले को भी लखनऊ स्पेशल कोर्ट में ट्रांसफर किया जाए।
– साल 2001 में हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस मामले में ज्वाइंट चार्जशीट भी सही है और एक ही जैसे मामले हैं. लेकिन रायबरेली के केस को लखनऊ ट्रांसफर नहीं किया जा सकता क्योंकि राज्य सरकार ने नियमों के मुताबिक 198 के लिए चीफ जस्टिस से मंजूरी नहीं ली
– केस सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। पुनर्विचार और क्यूरेटिव पिटीशन भी खारिज कर दी गई।
– रायबरेली की अदालत ने बाद में सभी नेताओं से आपराधिक साजिश की धारा हटा दी।
– इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 20 मई 2010 को आदेश सुनाते हुए ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।
– 2011 में करीब 8 महीने की देरी से सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी।
– 2015 में पीडि़त हाजी महमूद हाजी ने भी सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की।