इसके लिए बांस मिशन को 50 हजार से अधिक बांस की थैलियां बनाने के लिए कहा है। थैलियों की क्षमता तीन से चार लीटर की होना जरूरी है, जिससे उसमें चार साल तक पौधे को रखा जा सके।
सरकार के 50 माइक्रोन के अधिक की सिंगल यूज पॉलीथीन पर प्रतिबंध लगाए निर्णय से नर्सरी में बगैर पॉलीथिन पौधे तैयार करना एक चुनौती बन गया है। इसमें वन विभाग ने थर्माकोल, कपड़े के बैंग, बांस के पौधे के कप और मिट्टे का गोला बनाकर पौध तैयार करने पर प्रयोग कर चुका है, लेकिन इसके परिणाम बेहतर नहीं आए हैं।
थर्माकोल और कपड़े के बैग तो ६ माह के अंदर ही खराब हो जाते हैं। जबकि मिट्टी के गोले पानी के साथ ही बह गए। इसको लेकर अब वन विभाग पॉलीथीन के नए-नए विकल्पों का तलाश कर रहा है। इस संबंध में वन विभाग ने वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को भी पत्र लिखा है कि अगर इसका कोई विकल्प हो तो वे इस संबंध में विभाग को बताएं।
फिलहाल वन विभाग ने पिछले दो साल के पौधरोपण के लिए नर्सरियों में पौधे तैयार करने के लिए पॉलीथीन से ही पौधे तैयार करने का इंतजाम किया है, लेकिन लगातार इसके विकल्पों की तलाश में जुटा हुआ है। अन्य राज्यों से भी पॉलीथीन के विकल्पों पर विभाग के अफसर बात-चीत कर रहे हैं।
रूट-ट्रे पर भी विचार
वन विभाग रूट-ट्रे पर भी पौधे तैयार करने पर विचार कर रहा है। हालांकि इससे पौधे तैयार करने में वन विभाग को काफी महंगा पड़ेगा। एक रूट-ट्रे चार से पांच सौ में आती है, इसमें दस से बीस पौधे एक साथ तैयार होते हैं। सामाजिक वानकीय योजना के दौरान वन विभाग ने वर्ष 1991-72 में करीब एक लाख रूट-ट्रे खरीदे थे, जो आज भी काम कर रहे हैं। इसमें पौधे तैयार करने में कर्मचारियों को सावधानी बरतनी पड़ती है, क्योंकि यह एक बार टूटने के बाद अनुपयोगी हो जाते हैं।
सात करोड़ पौधे प्रति वर्ष तैयार करता है विभाग
विभाग अपनी नर्सरियों में 7 से 9 करोड़ पौधे प्रति वर्ष तैयार करता है। प्रदेश में 171 बड़ी नर्सरियां हैं, इसमें अनुसंधान के भी कार्य किए जाते हैं। इसमें प्रत्येक नर्सरी में 20 लाख से अधिक पौधे तैयार किए जाते हैं। इसके अलावा प्रत्येक जिले में अगल-अलग नर्सरियां बनाई गई हैं जिसमें एक लाख से 50 हजार तक पौधे तैयार किए जाते हैं। इसके अलावा बास मिशन और वन विकास निगम की भी ५०-५० से अधिक नर्सरियां हैं, जहां पौधे तैयार किए जाते हैं।
रुचि ले रहा है बांस मिशन