भोपाल

डिफॉल्टर कंपनी में 111 करोड़ रुपए किए थे निवेश, एफआईआर दर्ज

ईओडब्ल्यू ने भोपाल को-ऑपरेटिव सेंट्रल बैंक के प्रबंधकों को बनाया आरोपी

भोपालNov 24, 2019 / 01:53 am

manish kushwah

डिफॉल्टर कंपनी में 111 करोड़ रुपए किए थे निवेश, एफआईआर दर्ज

भोपाल. भोपाल को-ऑपरेटिव सेंट्रल बैंक लिमिटेड के तत्कालीन प्रबंधक व उपायुक्त आरएस विश्वकर्मा द्वारा 111.29 करोड़ रुपए डिफॉल्टर कंपनी इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेस लि. (आईएल एंड एफएल) में निवेश करने के मामले में ईओडब्ल्यू ने एफआईआर दर्ज की है।
शासन ने यह मामला ईओडब्ल्यू को सौंपा था, करीब दो महीने की जांच के बाद जांच एजेंसी ने मामले में केस दर्ज किया है। बताया जा रहा है कि ईओडब्ल्यू जांच रिपोर्ट सहकारिता विभाग को सौंपेगा, ताकि आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की जा सके। आरोप है कि तत्कालीन एमडी व उपायुक्त आरएस विश्वकर्मा, शाखा प्रबंधक सुभाष शर्मा और सीए आरएस सूद ने 9,16, 26 अप्रेल और 7 जून 2018 को डिफॉल्टर कंपनी में 111.29 करोड़ रुपए जमा किए, जो अब डूबत में चले गए। इससे बैंक को 111.29 करोड़ रुपए के साथ ही इस राशि से मिलने वाला ब्याज मिलाकर करीब 118 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।
जांच में पता चला कि निवेश की गई रकम वापस मिलने की संभावना कम है। आईएल एंड एफएल कंपनी दिवालिया हो चुकी है। इधर, इस मामले में बैंक के मौजूदा अधिकारियों का तर्क है कि बैंक हित में निर्णय लिया गया था, लेकिन इसकी व्याख्या गलत तरीके से हो रही है। सेबी ने जिस कंपनी को 5 सितारा रेटिंग दी थी और वह कंपनी 9.25 से 9.50 फीसदी तक ब्याज दे रही था, इसलिए निवेश किया गया। अधिकारियों का यह भी तर्क है कि इस कंपनी में एलआईसी, एसबीआई के करीब 30 हजार करोड़, अमूल इंडिया और मदर डेयरी समेत मप्र की बिजली कंपनियों के करोड़ों रुपए का निवेश किया गया है। यह सब सेबी की रेटिंग और अधिक ब्याज हासिल करने के लिए किया। इसमें बैंक की गलती नहीं है।

कंपनी ने भेजा पत्र
बैंक अधिकारियों ने नाम न छापने के अनुरोध पर बतायाकि आईएल एंड एफएल कंपनी ने हाल ही में एक पत्र भेजकर कहा है कि मार्च 2020 के पहले 15त्नराशि लौटा दी जाएगी। बैंक प्रबंधन ने कंपनी से कहा है कि यह बात बैंक को सीधे कहने की बजाय नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में कहें। ज्ञात हो कि यह मामला अब एनसीएलटी में विचाराधीन है।
वसूली होगी मुश्किल
जानकारी के मुताबिक शासन आरोपी अधिकारियों से रिकवरी कर सकता है। इसकी अनुशंसा भी की जा रही है। हालांकि इसमें सबसे बड़ी अड़चन यह आ सकती है कि तत्कालीन आरोपी अधिकारियों का पूरे सेवाकाल का वेतन-भत्ता मिला लिया जाए तो भी इतनी बड़ी राशि नहीं होती है। ऐसे में वसूली अटक सकती है। बताया जा रहा है कि जिम्मेदारों पर सख्त कार्रवाई की तैयारी है।
संचालक मंडल को रखा ताक पर
जांच में सामने आया कि तत्कालीन अधिकारियों ने संचालक मंडल से अनुमोदन नहीं लिया था। न ही सहकारी बैंकिंग नियमों का पालन किया। नियमानुसार सरकारी या निजी बैंकों में निवेश का प्रावधान है, लेकिन अधिकारियों ने एक डिफॉल्टर नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी (एनबीएफसी) में यह पैसा जमा कर दिया। इनके खिलाफ धारा 49, 120बी, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत केस दर्ज किया गया है।
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