प्रदेश में ऐसी करीब 7500 महिलाएं हैं. इनमें से करीब 3000 महिलाएं बैंक सखी हैं और 4500 महिलाएं बैंकिंग करेस्पांडेंट की भूमिका में हैं। ये सभी महिलाएं स्व-सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं के बैंकिंग कार्य करती हैं। वे समूहों से जुड़ी महिलाओं को अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए बैंक से कर्ज भी दिला रही हैं। प्रदेश में कुल 340949 स्व-सहायता समूह हैं। इन समूहों से जुड़ी कम पढ़ी-लिखी महिलाओं को बैंक से लेन-देन में दिक्कत होती है। इस समस्या के समाधान के लिए समूह की महिलाओं में से ही दसवीं या 12वीं उत्तीर्ण महिलाओं को चुना गया. इन महिलाओं को बैंकिंग करेस्पांडेंट एवं बैंक सखी की जिम्मेदारी सौंप दी गई।
महिलाओं को बाकायदा इंडियन इंस्टीट्यूट आफ बैंकिंग फाइनेंस (आइआइबीएफ) से प्रशिक्षण दिलाई गई. इसके बाद ही महिलाओं को बैंक से लेन-देन में सहयोग करने का काम सौंपा गया। बैंक अधिकारियों के अनुसार इन महिलाओं ने बेहतर प्रदर्शन किया है. 6 साल में इन्होंने बैंकों से अन्य महिलाओं को करीब 50 करोड़ रुपए का कर्ज दिलाया है।
ऐसे करती हैं काम
बैंकिंग करेस्पांडेंट जरूरतमंद महिला के घर पहुंचकर उसके खाते से राशि निकालकर देती हैं। इसके लिए आधार नंबर और थंब इंप्रेशन से पहचान भी करती हैं। इससे जहां महिला का बैंक तक जाना-आना बच जाता है वहीं बैंक करेस्पांडेंट को भी प्रति ट्रांजेक्शन कमीशन मिल जाता है। राज्य आजीविका मिशन के अधिकारी बताते हैं कि कई महिलाएं बैंक सखी बनकर आत्मनिर्भर हो चुकी हैं. वे घर-गृहस्थी के काम में लगी होते हुए भी साढ़े तीन से चार हजार रुपए प्रति माह तक कमा रहीं हैं। बैंक से लेन-देन में समूह की महिलाओं की मदद करती हैं।