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बुंदेलखंड में वर्चस्व की लड़ाई मतभेद से मनभेद तक

locationभोपालPublished: Sep 02, 2018 09:37:40 am

Submitted by:

Krishna singh

हमेशा चर्चा में रहा गोपाल-भूपेंद्र का विवाद, गोपाल भार्गव और प्रहलाद पटेल में भी मनमुटाव, कार्यकर्ताओं के बीच भी बन गए गुट

बुंदेलखंड

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भोपाल. बुंदेलखंड में जातीय लड़ाई राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में बदल गया है। भाजपा में ये लड़ाई पिछले 15 साल में अपने चरम पर पहुंच गई है। पार्टी के बड़े नेताओं के मतभेद कई बार सार्वजनिक मंचों पर सामने आ चुके हैं। पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव और गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह के मतभेद अब मनभेद में बदल चुके हैं। गोपाल भार्गव और दमोह सांसद प्रहलाद पटेल के मतभेद भी सुर्खियों में रहे हैं। कई विधायकों के बीच भी द्वंद्व चल रहा है। बुंदेलखंड में भाजपा में कांग्रेस की तर्ज पर छत्रप बन गए हैं। नतीजन, कार्यकर्ताओं में भी गुटबाजी बढ़ी है।
गोपाल-भूपेंद्र ने एक-दूसरे से मुंह मोड़ा
गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह का विवाद तब सार्वजनिक हुआ, जब पहली बार मनाए जा रहे योग दिवस पर सागर में दोनों नेता अगल-बगल में बैठे, लेकिन एक-दूसरे से मुंह मोड़ लिया था। मतभेद की कहानी बयां करती ये तस्वीर मीडिया में छाई रही। उमा भारती ने भार्गव को मंत्री बनाया था तब बुंदेलखंड में उनका एक छत्र राज था।
राजनीतिक नहीं जातिगत वर्चस्व की लड़ाई
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक शिव अनुराग पटैरिया कहते हैं कि बुंदेलखंड में जातिगत वर्चस्व की लड़ाई चल रही है, जो राजनीतिक वर्चस्व में बदल गई है। इस अंचल में यादव और लोधी वोटों का वर्चस्व भी माना जाता है। खुद को बड़ा चेहरा दिखाने की होड़ में गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह के मतभेद मनभेद में बदल गए हैं।
2005 में बदले हालात
प्रदेश भाजपा की रजनीति के केंद्र में 2005 में शिवराज सिंह चौहान के आने साथ ही हालात बदल गए। शिवराज ने भूपेंद्र को महामंत्री बनाकर संगठन में उनका दबदबा बढ़ा दिया। यहां से बुंदेलखंड में वर्चस्व की लड़ाई तेज हो गई। 2008 में भूपेंद्र सिंह चुनाव हार गए। इसके बाद 2009 में सागर से लोकसभा सांसद बने। बुंदेलखंड में भार्गव और भूपेंद्र के अलग-अलग गुट बन गए।
कार्यक्रमों से परहेज
प्रहलाद पटेल और भार्गव के बीच भी बड़े मतभेद सार्वजनिक हो चुके हैं। प्रहलाद दमोह सांसद हैं। भार्गव की रेहली सीट भी दमोह लोकसभा क्षेत्र में आती है, लेकिन दोनों नेता एक-दूसरे के कार्यक्रमों में नजर नहीं आते। मतभेद पहली बार तब सामने आया जब प्रहलाद गढ़ाकोटा में थाने के सामने धरने पर बैठे और पुलिस पर भार्गव के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया।
विधायकों में मतभेद
अनदेखी से नाराज सुरखी विधायक पारुल साहू ने चुनाव न लडऩे का ऐलान किया था। नरयावली विधायक प्रदीप लारिया और पूर्व विधायक नारायण कबीरपंथी के बीच भी मनमुटाव है। छतरपुर में राज्यमंत्री ललिता यादव और पुष्पेंद्र प्रताप सिंह के बीच भी वर्चस्व की लड़ाई है। टीकमगढ़ में विधायक केके सिंह और राकेश गिरी के बीच की प्रतिद्वंद्विता भी छिपी नहीं है।

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