गोपाल-भूपेंद्र ने एक-दूसरे से मुंह मोड़ा
गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह का विवाद तब सार्वजनिक हुआ, जब पहली बार मनाए जा रहे योग दिवस पर सागर में दोनों नेता अगल-बगल में बैठे, लेकिन एक-दूसरे से मुंह मोड़ लिया था। मतभेद की कहानी बयां करती ये तस्वीर मीडिया में छाई रही। उमा भारती ने भार्गव को मंत्री बनाया था तब बुंदेलखंड में उनका एक छत्र राज था।
गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह का विवाद तब सार्वजनिक हुआ, जब पहली बार मनाए जा रहे योग दिवस पर सागर में दोनों नेता अगल-बगल में बैठे, लेकिन एक-दूसरे से मुंह मोड़ लिया था। मतभेद की कहानी बयां करती ये तस्वीर मीडिया में छाई रही। उमा भारती ने भार्गव को मंत्री बनाया था तब बुंदेलखंड में उनका एक छत्र राज था।
राजनीतिक नहीं जातिगत वर्चस्व की लड़ाई
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक शिव अनुराग पटैरिया कहते हैं कि बुंदेलखंड में जातिगत वर्चस्व की लड़ाई चल रही है, जो राजनीतिक वर्चस्व में बदल गई है। इस अंचल में यादव और लोधी वोटों का वर्चस्व भी माना जाता है। खुद को बड़ा चेहरा दिखाने की होड़ में गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह के मतभेद मनभेद में बदल गए हैं।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक शिव अनुराग पटैरिया कहते हैं कि बुंदेलखंड में जातिगत वर्चस्व की लड़ाई चल रही है, जो राजनीतिक वर्चस्व में बदल गई है। इस अंचल में यादव और लोधी वोटों का वर्चस्व भी माना जाता है। खुद को बड़ा चेहरा दिखाने की होड़ में गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह के मतभेद मनभेद में बदल गए हैं।
2005 में बदले हालात
प्रदेश भाजपा की रजनीति के केंद्र में 2005 में शिवराज सिंह चौहान के आने साथ ही हालात बदल गए। शिवराज ने भूपेंद्र को महामंत्री बनाकर संगठन में उनका दबदबा बढ़ा दिया। यहां से बुंदेलखंड में वर्चस्व की लड़ाई तेज हो गई। 2008 में भूपेंद्र सिंह चुनाव हार गए। इसके बाद 2009 में सागर से लोकसभा सांसद बने। बुंदेलखंड में भार्गव और भूपेंद्र के अलग-अलग गुट बन गए।
प्रदेश भाजपा की रजनीति के केंद्र में 2005 में शिवराज सिंह चौहान के आने साथ ही हालात बदल गए। शिवराज ने भूपेंद्र को महामंत्री बनाकर संगठन में उनका दबदबा बढ़ा दिया। यहां से बुंदेलखंड में वर्चस्व की लड़ाई तेज हो गई। 2008 में भूपेंद्र सिंह चुनाव हार गए। इसके बाद 2009 में सागर से लोकसभा सांसद बने। बुंदेलखंड में भार्गव और भूपेंद्र के अलग-अलग गुट बन गए।
कार्यक्रमों से परहेज
प्रहलाद पटेल और भार्गव के बीच भी बड़े मतभेद सार्वजनिक हो चुके हैं। प्रहलाद दमोह सांसद हैं। भार्गव की रेहली सीट भी दमोह लोकसभा क्षेत्र में आती है, लेकिन दोनों नेता एक-दूसरे के कार्यक्रमों में नजर नहीं आते। मतभेद पहली बार तब सामने आया जब प्रहलाद गढ़ाकोटा में थाने के सामने धरने पर बैठे और पुलिस पर भार्गव के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया।
प्रहलाद पटेल और भार्गव के बीच भी बड़े मतभेद सार्वजनिक हो चुके हैं। प्रहलाद दमोह सांसद हैं। भार्गव की रेहली सीट भी दमोह लोकसभा क्षेत्र में आती है, लेकिन दोनों नेता एक-दूसरे के कार्यक्रमों में नजर नहीं आते। मतभेद पहली बार तब सामने आया जब प्रहलाद गढ़ाकोटा में थाने के सामने धरने पर बैठे और पुलिस पर भार्गव के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया।
विधायकों में मतभेद
अनदेखी से नाराज सुरखी विधायक पारुल साहू ने चुनाव न लडऩे का ऐलान किया था। नरयावली विधायक प्रदीप लारिया और पूर्व विधायक नारायण कबीरपंथी के बीच भी मनमुटाव है। छतरपुर में राज्यमंत्री ललिता यादव और पुष्पेंद्र प्रताप सिंह के बीच भी वर्चस्व की लड़ाई है। टीकमगढ़ में विधायक केके सिंह और राकेश गिरी के बीच की प्रतिद्वंद्विता भी छिपी नहीं है।
अनदेखी से नाराज सुरखी विधायक पारुल साहू ने चुनाव न लडऩे का ऐलान किया था। नरयावली विधायक प्रदीप लारिया और पूर्व विधायक नारायण कबीरपंथी के बीच भी मनमुटाव है। छतरपुर में राज्यमंत्री ललिता यादव और पुष्पेंद्र प्रताप सिंह के बीच भी वर्चस्व की लड़ाई है। टीकमगढ़ में विधायक केके सिंह और राकेश गिरी के बीच की प्रतिद्वंद्विता भी छिपी नहीं है।