जिस प्रदेश में महान स्वतंत्रता सेनानी टंट्या भील का जन्म हुआ। जिस शबरी भीलनी के जूठे बेर भगवान राम ने भी बड़े चाव से खाए थे। उसी भील समाज का अपमान हुआ है। जी हां मध्यप्रदेश में पीएससी की प्रारंभिक परीक्षा के द्वितिय प्रश्न पत्र में एक गद्यांश देकर भीलों से जुड़े कुछ सवाल पूछे गए थे। उस गद्यांश में भील समाज की सामाजिक, आर्थिक स्थिति का ब्यौरा था। लेकिन इसी प्रश्न में भील समाज के लिए कुछ आपत्तिजनक बातें लिखीं गईं।
भील समाज का अपमान
भीलों की आर्थिक विपन्नता का प्रमुख कारण आय से अधिक खर्च करना है। भील वधु मूल्य रुपी पत्थर से बंधी शराब के अथाह सागर में डूबती जा रही जनजाति है। उपर से साहूकारों महाजनों द्वारा दिये ऋण बढ़ता ब्याज इस समंदर में बवंडर का काम करता है। जिसके दुष्चक्र से ये लोग कभी बाहर नहीं निकाल पाते हैं। भीलों की आपराधिक प्रवृत्ति का एक प्रमुख कारण है कि सामान्य आय से अपनी देनदारियां पूरी नहीं कर पाते हैं। फलत: धन उपार्जन की आशा में गैर वैधानिक और अनैतिक कार्यों में लिप्त हो जाते हैं।
इस गद्यांश से जुड़े ही सवाल पूछे गए जिनमें भी ऐसी ही आपत्तिजनक बातें थी। इस पेपर के खत्म होते ही मध्यप्रदेश में बवाल शुरु हो गया। बीजेपी से पहले कांग्रेस के ही आदिवासी नेताओं ने इस पर आपत्ति दर्ज कराई। कांग्रेस विधायक कांतिलाल हीरालाल अलावा ने जहां ट्वीट कर एमपीपीएससी चैयरमेन के खिलाफ कार्रवाई की मांग की और राज्यपाल को पत्र लिखा तो वहीं विधायक कांतिलाल भूरिया ने तो मीडिया को बुलाकर अपना आक्रोश प्रकट किया और कहा कि सारे आदिवासी कांग्रेसी विधायक सीएम से शिकायत करेंगे।
वहीं एक और कांग्रेस विधायक और दिग्विजय के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह ने तो यहां तक मांग कर डाली कि इस मामले में सीधे सीएम कमलनाथ को खेद प्रकट करना चाहिए। सोमवार सुबह चंद घंटों में मामला देशव्यापी हो गया। कांग्रेस ने इस घोर लापरवाही का पूरा ठीकरा पीएससी चैयरमैन और पेपर सेट करने वाले के माथे फोड़ दिया और सचिव रेणु पंत से इस्तीफे की मांग की जाने लगी। दिलीप मंडल ने भी ट्वीट में लिखा कि पूरे समाज को अपमानित करने वालों को अगर सजा नहीं मिली तो बाकी जगह भी ऐसा होगा। इस मामले में बीजेपी अध्यक्ष राकेश सिंह ने सीधे सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि इस प्रदेश में सरकार वीर आदिवासियों का अपमान कर रही है तो वहीं गोपाल भार्गव ने ट्वीट के जरिए सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। इधर खुद परीक्षा में बैठे बीजेपी विधायक राम दांगोरे ने भी इस मामले में विरोध प्रकट किया।
हालांकि दोपहर 3 बजे हड़बड़ाए पीएससी चैयरमैन भास्कर चौबे ने प्रेस कांफ्रेंस कर सफाई दी और केवल इतना कहा कि हम भी पेपर नहीं देख पाते हैं क्योंकि वो सीलबंद होते हैं। पेपर सेट करने वाले को नोटिस दिया गया है और इस पर हमारी समिति जांच कर कार्रवाई करेगी। साथ ही बताया कि इन सवालों पर अगर आपत्ति आई तो इन्हें हटाकर मार्किंग की जाएगी।
लेकिन इसके बाद जयस के कार्यकर्ताओं ने इंदौर में पीएससी दफ्तर के बाहर प्रदर्शन शुरू कर दिया और अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने हुए नारेबाजी की। कुल मिलाकर एक बार फिर साफ हो गया कि पीएससी जैसी गंभीर परीक्षाओं में भी किस तरह की लापरवाहियां की जाती हैं। कभी गलत सवाल और जवाब को लेकर आयोग सुर्खियों में रहता है तो कभी आरक्षण और कटआफ के मसले पर। लेकिन इस बार देखना है कि आदिवासियों के अपमान के साथ शुरु हुई ये जंग किस अंजाम तक पहुंचती है।