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True Story: भोपाल गैस कांड के बाद दुनिया नहीं सुन पाई इस गायिका की आवाज

locationभोपालPublished: Dec 01, 2018 05:12:43 pm

Submitted by:

Manish Gite

True Story: भोपाल गैस कांड के बाद दुनिया नहीं सुन पाई इस गायिका की आवाज

bhopal gas tragedy

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भोपाल। हिन्दुस्तान ही नहीं कुवैत, इंग्लैंड से लेकर अफ्रीका तक आज भी एक महिला कव्वाल के दिवाने हैं। जिसकी आवाज भी इतनी दमदार है कि फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार से लेकर जैकी श्राफ भी कव्वाली सुनने दौड़ पड़ते थे। इन्हें ही देश की पहली महिला कव्वाल का खिताब प्राप्त है।
mp.patrika.com आपके बताने जा रहा है कि शकीला बानो भोपाली केबारे में जिन्होंने भोपाल को अलग पहचान दिलाई। लेकिन बदकिस्मती से भोपाल में हुई 2 दिसंबर 1984 की भीषण त्रासदी में उनकी आंख चली गई थीं।
शकीला का जन्म 1942 में और मृत्यु 16 दिसंबर 2002 में हुई थी। पूरी जिंदगी भोपाल में रहने वाली शकीला की आवाज इतनी पसंद की गई कि अफ्रीका, इंग्लैंड और कुवैत में कव्वाली मुकाबलों में जाने लगीं। इसके साथ ही बॉलीवुड में भी इन्हें हाथों हाथ लिया जाने लगा।

गैस कांड में हो गई थी ‘मौत’
शकीला बानो की कव्वाली के दिवाने लोग कहते हैं कि भले ही उनका निधन 16 दिसंबर 2002 को हुआ था, लेकिन वो तो पहले ही खत्म हो गई थीं। 2-3 दिसंबर 1984 को भोपाल गैस कांड में शकीला की आवाज चले गई थी। जब शकीला की आवाज दुनियाभर में सुनी जा रही थी, उसी दौर में किसी गायक की आवाज छिन जाए, इसका दर्द शायद ही कोई महसूस कर सकता है।

 

बेबाक अंदाज के लिए थी चर्चित
उस दौर में एक मुस्लिम महिला का परदे में से बाहर निकला और पुरुषों के सामने बैठकर कव्वाली करना लोगों को बड़ा हैरान करता था, लेकिन शकीला ने अपने बेबाक अंदाज और दबंग व्यक्तित्व के कारण अपनी अलग ही धाक जमाई थी। काफी लम्बे संघर्ष के बाद उन्हें फ़िल्में और स्टेज पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने का मौका मिला। शकीला बानो ने कभी विवाह नहीं किया। उनके परिवार में एक बहन और एक भाई हैं। उनके साथ बाबू कव्वाल के साथ उनकी जोड़ आज भी जानी जाती है। दोनों के बीच होने वाला मुकाबला दर्शकों को बांधे रखता था।

 

 

जब बॉलीवुड ने हाथों हाथ लिया
50 के दशक में शकीला बॉलीवुड के संपर्क में आ गई। उस जमाने के सुपर स्टार दिलीप कुमार भी शकीला के फैन हो गए। वे जब दिलीप कुमार के बुलावे पर मुंबई पहुंची तो कव्वाली के शौकीन लोगों ने उन्हें हाथों-हाथ लिया। इसके बाद फिल्मों में भी उनकी आवाज का जादू चला। 1957 में निर्माता जगमोहन मट्टू ने अपनी फ़िल्म ‘जागीर’ में एक्टिंग करने का मौका दिया। इसके बाद उन्हें सह-अभिनेत्री, चरित्र अभिनेत्री की भूमिका मिलती रही। HMV कंपनी ने 1971 में उनकी कव्वाली का पहला एलबम बनाया तो पूरे भारत में शकीला बानो पहचानी जाने लगीं।

 

जैकी श्राफ ने की मदद
गैस कांड में आवाज छिन जाने के बाद शकीला अक्सर बीमार रहने लगी थी। उन्हें दमे, डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर रहने लगा था। जब उनका अंतिम दौर अभाव में गुजर रहा था, तब जैकी श्राफ जैसे नामी कलाकार उनकी मदद के लिए आए, लेकिन वो मदद भी काफी नहीं रही। इसके बाद शकीला ने अपना सबकुछ भाग्य पर छोड़ दिया था। उनके इन हालातों पर उन्हीं की एक मशहूर कव्वाली सटीक बैठती है।


अब यह छोड़ दिया है तुझ पर चाहे ज़हर दे या जाम दे…

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