script#GAS TRAGEDY: स्याह रात के उस डरावने मंजर के महानायक बने थे ये चेहरे | Bhopal Gas Tragedy: Hero of the year of 1984 | Patrika News

#GAS TRAGEDY: स्याह रात के उस डरावने मंजर के महानायक बने थे ये चेहरे

locationभोपालPublished: Dec 01, 2016 05:48:00 pm

Submitted by:

sanjana kumar

भोपाल की उस स्याह रात में कुछ चेहरे ऐसे भी थे जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना पीडि़तों को बचाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। आप भी जानें इन महानायकों की कहानी…

bhopal gas tragedy,hero of that year 1984

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भोपाल। दुख भय और मौत की इस खलबली के बीच कई ऐसे लोग भी थे, जो अपनी जिंदगी की परवाह किए बिना पीडि़तों की जान बचाने में लगे थे। इनमें कई ऐसे हैं जो आज भी उस जहरीली गैस का दंश झेल रहे हैं। भोपाल की उस स्याह रात में कुछ चेहरे ऐसे भी थे जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना पीडि़तों को बचाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। आप भी जानें इन महानायकों की कहानी…

सिस्टर फेलिसिटी

अस्पताल के बरामदों और वार्डों में पड़े अनाथ बच्चों को बचाने के लिए जो कुछ भी बन पड़ा उन्होंने किया। दर्जनों बच्चे ऐसे थे जो अंधे होने के बावजूद इधर-उधर घूम रहे थे। अपनी ही उल्टी पर नंगे पैर बैठे खर्राटे भर रहे थे। सिस्टर ने सबसे पहले अस्पताल के भूतल पर एकदम अंत में ले जाकर बच्चों को अलग-अलग समूहों में इकट्ठा किया। उसने अस्पताल में ही अपना सहायता केंद्र बना रखा था। 


उसने वार्ड में तेजी से भाग-दौड़ की ओर दूसरे बच्चों को उनके पास ले आई। उनमें से अधिकांश रात में खो गए थे। जब अफरा-तफरी तथा भय के मारे उनके माता-पिता ने उन्हें कुछ ट्रकों और कारों में सवार लोगों को सौंप दिया था। दो विद्यार्थियों की मदद से सिस्टर ने सावधानीपूर्वक बच्चों की आंखों को साफ किया, जिन पर गैस का असर हुआ था। कई पर तो असर तुरंत दिखा। उसकी खुद की आंखें आंसुओं से भर आई थीं। जब एक अनाथ बालक ने जोर से चिल्लाकर कहा था, हां मैं देख सकता हूं। इसके बाद वह उन लोगों को बचाने लगी जिनका चमत्कारिक ढंग से उसके सहायता केंद्र पर निदान कर दिया गया था। 

वी.के. शर्मा, उपस्टेशन मास्टर


उस बेरहम रात में सैकड़ों लोगों की जिंदगी बचाने में जुटा था ये शख्स। इन्होंने यात्रियों से भरी ट्रेन के ड्राइवर को रेल को तेजी से भोपाल से बाहर ल जाने का आदेश दिया, जो अभी-अभी जानलेवा गैस के बादल की चपेट में आई थी। जानलेवा भभक से मारे जाने के विश्वास में वीके शर्मा को मुर्दाघर ले जाया गया। जहां उनहें चिता की आग से उनके एक मित्र ने बचाया। आज भी उस त्रासदी कई परिणाम भुगत रहे हैं। 


मेजर कंचाराम खनूजा

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भोपाल इंजीनियर दल इकाई कका यह सिख कमांडर उस विनाशक रात का महानायक था। अपने बचाव के लिए उसने अग्रिशामकों वाला चश्मा और मुंह पर गीला रुमाल बांधकर लोगों को बचाना शुरू कर दिया। वह गत्ता फैक्ट्री के चार सौ मजदूरों और उनके परिवारों को बचाने के लिए एक ट्रक पर चढ़ गयाथा। जिन पर नींद के दौरान ही गैस ने हमला कर दिया था। 

डॉ. दीपक गांधी

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भोपाल की उस काली रात में हमीदिया अस्पताल में ड्यूटी देने के नाम पर चंद डॉक्टर्स ही थे। वहीं कुछ अपनी जान बचाने के लिए वहां से निकल भागे थे। दीपक गांधी गैस पीडि़त लोगों को संभालने वाले पहले डॉक्टर थे। उसके बाद मरने वाले लोगों का ज्वचर ही पूरे शहर से फूट पड़ा। वे तीन दिन और तीन रात लगातार काम करते रहे। 3 दिसंबर की सुबह भोर तक हमीदिया अस्पताल अस्पताल नहीं बल्कि मरने वालों का एक विशाल घर बन चुका था। 


डॉ. सत्पथी


हजारों लोग मौत की गहरी नींद में सो चुके थे। किसी को भी आज तक मृतकों का सही आंकड़ा नहीं पता। सरकार जहां मृतकों की संख्या हजारों में मानती है, वहीं निजी संस्थाएं इनकी संख्या लाखों में दर्शाती हैं। फिर भी उस समय डॉ. सत्पथी और एक फॉरेंसिक विशेषज्ञ ऐसे शख्स थे, जिन्होंने पीडि़तों की पहचान के लिए बड़ी संख्या में फोटो प्रदर्शित किए थे। उनमें से चार सौ लोग तो ऐसे थे जिनपर किसी ने दावा नहीं किया। पूरे के पूरे परिवार तबाह हो गए थे।

साभार: भोपाल, बारह बजकर पांच मिनट
लेखक: डोमनिक लापिएर, जेवियर मोरो
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