1984 में शहर के सबसे बड़े बोगदा पुल डिपो के इंचार्ज रहे एसके मल्ल बताते हैं, गैस त्रासदी के दूसरे दिन से अंतिम संस्कारों के लिए लकडिय़ां रवाना होना शुरू हो गईं थी। तब डिपो में 14 हजार क्विंटल से अधिक लकड़ी थी, लेकिन दो ही दिनों में डिपो पूरा खाली हो गया। इसी तरह दूसरा डिपो माता मंदिर तो तीसरा 1464 डिपो था। इन दोनों डिपो में थी लगभग दो-दो हजार क्विंटल लकडिय़ों का स्टॉक था अगले दो दिनों में वह भी पूरी तरह खत्म हो गया। एक दाह संस्कार में सामान्य तौर पर ढ़ाई से तीन क्विंटल लकड़ी लगती है। शहर भर डिपो से जितनी लकडिय़ां दाह संस्कारों के लिए गई उससे स्पष्ट है कि गैस कांड के बाद पांच-छह हजार से अधिक तो दाह संस्कार ही हुए होंगे, लेकिन इन मौतों की सच्चाई कभी सामने ही नहीं आ सकी।
खाली हो गए 70 से ज्यादा पीठे
उन दिनों शहर में लकड़ी के 70 से ज्यादा पीठे थे जो जलावन लकड़ी की बिक्री करते थे। इन पीठों के मालिक भी दो से तीन ट्रक लकडिय़ां बेचने के लिए रखते थे। गैस कांड के बाद वह सारे डिपो भी खाली हो गए।
उन दिनों शहर में लकड़ी के 70 से ज्यादा पीठे थे जो जलावन लकड़ी की बिक्री करते थे। इन पीठों के मालिक भी दो से तीन ट्रक लकडिय़ां बेचने के लिए रखते थे। गैस कांड के बाद वह सारे डिपो भी खाली हो गए।